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________________ शरीर के इन तीन भागों की परिकल्पना की जाती है। इसमें नाभि कमल में साधक यह चिन्तवन करता है कि मेरे नाभि कमल में सोलह दल वाला एक कमल है, जिसकी प्रत्येक पंखुडी पर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, लु, ल, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अ: ये सोलह अक्षर लिखे हुए हैं। वह इन वर्गों पर मन को टिकाता है, जिससे उसका चित्त एकाग्र हो जाता है और ज्ञान तन्तुओं के सक्रिय होने से बुद्धि कौशल जाग्रत होता है। हृदय कमल में वह सोचता है कि हृदय स्थल पर चौबीस पाँखुडियों वाला एक कमल है। उस कमल के मध्य एक कर्णिका भी है इन चौबीस दलों एवं कर्णिका पर क,ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, ये पच्चीस वर्ण लिखे हुए हैं। इस ध्यान से प्रज्ञाशक्ति जाग्रत होती है। मुखकमल में वह ध्यान करता है कि मुखमण्डल के ऊपर 8 पत्रों वाला एक कमल बना हुआ है। जिसमें प्रत्येक पत्र पर प्रदक्षिणा क्रम से संचार करते हुए य, र, ल, व, श,ष, स, ह ये आठ वर्ण अंकित हैं। ऐसा ध्यान करने वाला योगी अभ्रान्त होकर श्रुतज्ञान के सागर का पारगामी हो जाता है। कमल के पत्तों और उसकी कर्णिका के मध्य में अनादि सिद्ध वर्गों का ध्यान करने वाला योगी कुछ ही समय में नष्ट आदि विषय सम्बन्धी - गुमी हुई वस्तु का ज्ञान करने वाला हो जाता है। आचार्य शुभचन्द्र और आचार्य हेमचन्द्र द्वारा वर्णित विषय में पर्याप्त समानता है। क्वचिदपि ही शाब्दिक अन्तर दिखाई देता है। इससे अधिक विविधता के दर्शन दुर्लभ होते हैं। पदस्थध्यान के प्रतिपादन के समय आचार्य शुभचन्द्र ने मन्त्रराज णमोकार के संक्षिप्त अर्थात् बीजाक्षर रूप एवं सम्पूर्ण रूप में ध्यान करने का भी निर्देश किया है। वे हैं बीजाक्षर के विषय में कहते हैं - . समग्र मन्त्रों के अधीश्वर, समस्त तत्त्वों के अधिनायक, आदि-मध्य तथा अन्त के भेद से स्वर एवं व्यंजन से निष्पन्न, ऊपर तथा नीचे रेफ युक्त, हकार युक्त, चन्द्रबिन्दु सहित यह मन्त्र; मन्त्रों का राजा कहा गया है। स्वर्णमय कमल के बीच में कर्णिका पर अवस्थित मल एवं कलंकवर्जित शरद ऋतु के चन्द्र की किरणों के समान और गौर वर्ण युक्त आकाश में गमन करते, दिशाओं में व्याप्त होते इस मन्त्र का जिनेश्वर के सदृश स्मरण करे, ध्यान करे। 1. ज्ञानार्णव, 38/3. 3. वही, 38/5. 2. वही, 38/4. 4. वही, 38/6 162
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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