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________________ 84 : प्रो० के० आर० चन्द्र आलोएमि' पाठ मूलाचार के आलोचेमि' पाठ से परवर्ती काल का है / मूलाचार का गरहणीयं'. पाठ 'गरहणिज्ज' से पुराना है / अतः मूल गाथा का प्राचीन पाठ इस प्रकार होना चाहिए निंदामि निंदणिज्जं, गरहामि य जं च मे गरहणीयं / आलोचेमि य सव्वं, जिणेहि जं जं च पडिकुटुं / / अथवा दूसरे पद का परवर्ती भाग होगा . 'सन्भंतरबाहिरं उवहिं' (7) महापच्चक्खाण-पइण्णयं की गाथा 20 का पाठ इस प्रकार है : जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। ते हं आलोएमी उवढिओ सव्वभावेणं / चन्द्रवेध्यक की गाथा 132 का पाठ इस प्रकार है : जे मे जाणंति जिणा अवराहे नाण-दंसण-चरित्ते / ते सव्वे आलोए उवढिओ सव्वभावेणं / / मरणविभक्ति की गाथा 120 का पाठ महापच्चक्खाण की गाथा 20 के समान ही है। - आतुरप्रत्याख्यान (2) की गाथा 31 का पाठ 'तेसु तेसु' उपयुक्त नहीं लगता है, 'जेसु जेसु' पाठ ही सार्थक है। आराधनापताका (1) की गाथा 207 में आलोएमी' के स्थान पर आलोएउं' पाठ मिलता है। निशीथसूत्र भाष्य की गाथा 3873 का पाठ इस प्रकार है : जे मे जाणंति जिणा अवराहे जेसु जेसु ठाणेसु / / तेहं आलोएतुं उवट्ठितो सव्वभावेण || 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण छन्द की दृष्टि से सभी गाथाएँ गाथा-छन्द में हैं। 2. भाषा की दृष्टि से विश्लेषण भाषिक दृष्टि से 'सव्वभावेणं' के स्थान पर निशीथसूत्र भाष्य का 'सव्वभावेणं' पाठ प्राचीन है, इसी प्रकार द्वितीया बहुवचन के लिए अवराहा' के बदले में उसका अवराहे' पाठ भी उचित ही है, उवढिओ' के बदले में उवहितो' पाठ भी उसमें पुराना है और जब उवट्ठितो' शब्द सभी ग्रन्थों में प्रयुक्त हुआ है तब सार्थक यही है कि 'ते हं आलोएमी' अथवा 'ते सव्वे आलोए' के स्थान पर निशीथसूत्र भाष्य का 'ते हं आलोएतुं उवट्ठितो' पाठ समीचीन लगता है। अर्थात् इस गाथा का प्राचीन रूप इस प्रकार होगा, जो कालान्तर में विविध ग्रंथों में बदले हुए रूप में मिलता है -
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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