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________________ प्रकीर्णकों का पाठ निर्धारण प्रो० के० आर० चन्द्र . किसी भी प्राचीन ग्रंथ के पाठ निर्धारण में उस ग्रंथ की उपलब्ध हस्तप्रतों का सहारा लिया जाता है और अन्य प्राचीन ग्रंथों में उस ग्रंथ के उद्धरण या पद्यात्मक हो तो समान पद्यों के पाठों की जाँच करनी पड़ती है कि कौनसा पाठ भाषा की दृष्टि से पुराना हो सकता है / साथ ही साथ अर्थ की समीचीनता और पद्यात्मक रचना हो तो छन्दोबद्भता का भी ध्यान रखना पड़ता है। यहाँ पर जैन श्वेताम्बर परंपरा के आगम ग्रंथों में से महापच्चक्खांण-पइण्णयं की कुछ गाथाओं के पाठ-निर्धारण का प्रयत्न किया गया है / महापच्चक्खाणमें जो गाथाएँ मिलती हैं वे अन्य श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रंथों में भी समानरूप में या कुछ परिवर्तन के साथ उपलब्ध होती हैं / प्रस्तुत लेख में उन गाथाओं के पाठों की समीक्षा दो तरह से की गयी है / एक भाषिक दृष्टि से और दूसरी छन्द की दृष्टि से / कहीं-कहीं पर अर्थ की दृष्टि से भी समीक्षा की गयी है और इन तीनों कसौटियों से जो पाठ उपयुक्त प्रतीत हुआ है उसे : प्राचीन और मान्य रखा गया है। ... हमारे अध्ययन का आधार महापच्चक्खाण-पइण्णय' का महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित संस्करण ही है जो अनेक हस्तप्रतों के आधार से प्रकाशित किया गया है / अतः पाठान्तरों पर यहाँ पर विचार करने की आवश्यकता हमें प्रतीत नहीं हुई है। (1) महापच्चक्खाण-पइण्णयं की गाथा-१ का पाठ इस प्रकार है: एस करेमि पणामं तित्थयराणं अणुत्तरगईणं / सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च / / मूलाचार की गाधा-१०८ का पाठ इस प्रकार है :एस करेमि पणामं जिणवसहस्स वड्डमाणस्स / सेसाणं च जिणाणं सगणगणधराणं च सव्वेसि / / 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण छन्द की दृष्टि से महापच्चक्खाण की गाथा छन्द में सही है जबकि मूलाचार की गाथा के दूसरे पाद का छठा और सातवां गण सही नहीं है और 12+ 15 के बदले में 12 + 17 मात्राएँ मिलती हैं। 1. आगम संस्थान ग्रन्थमाला 7, आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, 1991-92 /
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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