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________________ प्रकीर्णकों की पाण्डुलिपियाँ और प्रकाशित संस्करण : 75 लगा सकते हैं कि यह ग्रन्थ सर्वथा प्रामाणिक व अधिकारिक है / पाटण, जैसलमेर आदि प्रमुख भंडारों में जितने भी पइनासंगह मिलते हैं उनमें प्रायः इसको शामिल किया गया है। ऐसी स्थिति में इसकी गणना प्रकीर्णकों में नहीं करना अनुचित प्रतीत होता है / C-6 बङ्गचूलिका-अङ्गचूलिका की भांति यह प्रकीर्णक भी ठाणांग, व्यवहार, नंदीसूत्र व पाक्षिकसूत्र से प्रमाणित है / यद्यपि इस नाम का एक प्रकाशन फलोदी (मारवाड़) से प्रकाशित हुआ है किन्तु उसका स्तर संतोषजनक नहीं कहा जा सकता, अतः पुनः प्रयास जरूरी है / इसका वर्गचूलिका या वङ्गचूलिका नाम भी मिलता है / ग्रन्थ का संपादन पूरी शोध के बाद ही कर्तव्य है। C-7 योनिप्राभृत-यह दिगम्बर धरसेनाचार्य की रचना है और श्वेताम्बरों में प्रकीर्णक रूप में मान्य है / इसकी एकमात्र प्राचीन ताडपत्रीय प्रति पूना में है परन्तु वह अब खंडित अवस्था में है और अन्य श्वेताम्बर भंडारों में यह उपलब्ध नहीं है, अतः दिगम्बर भण्डारों में इसका अन्वेषण करना चाहिये, विषयवस्तु शीर्षकानुसार है / __C-8 सुप्राणिधान चतुःशरण-ऊपर क्रमांक-३ में इसी नाम की वीरभद्र की रचना हम गिना चुके हैं / अतः इसको सुप्राणिधान विशेषण लगा है / यह उसकी अपेक्षा बृहत् नहीं है बल्कि वृद्ध (प्राचीन) है / छः आवश्यक को छोड़कर दोनों चतुःशरणों में विषयवस्तु एकसी ही है परन्तु पाठ सर्वथा स्वतंत्र हैं / इसकी कई प्राचीन प्रतियाँ भंडारों में मिलती हैं / इसी नाम की 90 गाथाओं की एक रचना देवेन्द्रसाधु की भी मिलती है, परन्तु वह अर्वाचीन है। C-9 सारावली-इसमें अतिमुक्तक केवली द्वारा नारदऋषि को प्रतिबोध देने की कथा है और साथ में नारद का मोक्षगमन, पुण्डरिक (शत्रुञ्जय) गिरि, पंचपरमेष्ठिभक्ति, जीवदया व ज्ञान के फल का भी वर्णन है / अन्य लिंगी मोक्ष जाते हैं, उत्तराध्ययन की उन गाथाओं का यह सुन्दर दृष्टान्त है जिसका दर्शन, ज्ञान व चारित्र सम्य है, वह मोक्ष मार्ग पर है-मुक्त हो सकता है / सम्यक्त्वी भक्ति (अभ्यन्तर तप का 1 प्रकार-विनय) करे ही, ऐसां नियम नहीं है। ___C-10 जंबूप्रकीर्णक-इस नाम के दो ग्रन्थ दावेदार हैं एक है जम्बूस्वामी का चरित्र, जो 31 अध्यायों में पद्मसुन्दर द्वारा संकलित है / इसमें उनके पूर्व भव की कथायें हैं / ग्रन्थ की शैली (तेणं कालेणं तेणं समएणं), भाषा व प्राचीन प्रतियों को देखते हुए इस ग्रंथ की विषयवस्तु व रचना पुरानी है / बहुत से विद्वान इसको ही प्रकीर्णक गिनने के पक्ष में हैं। किन्तु दूसरा ग्रंथ जो जंबूप्रकरण या जंबूद्वीपसमास के नाम से मिलता है वह जंबूद्वीप का भूगोल है और इसकी भी कई ताड़पत्रीय व कागज की प्रतियाँ पाटण आदि भंडारों में मिलती हैं / निर्णय होकर दोनों का मुद्रण आवश्यक है / जिनरत्नकोश में जंबूचरित्र के तीन और नाम भी दिये गये हैं - आलापक स्वरूप, जम्बूदृष्टान्त और जंबूअध्ययन, जो प्रकीर्णक होने के द्योतक हैं।
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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