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________________ तित्थोगाली प्रकीर्णक और प्राचीन जैन इतिहास : 235 प्रस्तुत म्रन्थ में केवल दो ही चारित्र (सामायिक और छोदोपस्थापनीक) होने का विधान गाथा 867 में किया गया है / इसके पश्चात् गणिपिटक को द्रव्य की दृष्टि से नित्य और पर्याय की दृष्टि से अनित्य कहकर स्यावाद सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है / गाथा 872 में बतलाया गया है कि जो प्रमाण और नय से सुसज्जित स्यावाद की निन्दा करता है, वह सम्पूर्ण प्रवचन की ही निन्दा करता है / गाथा 924 से 975 तक छठे आरे का अत्यन्त भयानक व वीभत्स वर्णन किया गया है, जिसे सुनने और पढ़नेसे ही हृदय कम्पित हो जाता है / गाथा 976 से 1024 तक आगामी उत्सर्पिणी काल के छः आरों का वर्णन उलटे क्रम से किया गया है और बाद में आगामी चौबीसी के प्रथम तीर्थङ्कर 'महापद्म' का वर्णन किया गया है, जो आगामी उत्सर्पिणी काल के प्रथम आरे में जन्म धारण करेंगे। इसके बाद महापद्म तीर्थङ्कर के जन्मोत्सव, दीक्षा, श्रमणपर्याय तथा मोक्ष प्राप्ति का वर्णन किया गया है। प्रकीर्णक के अन्त में लेखक ने कहा है तेत्तीसं गाहाओ दोनि सता ऊ सहस्समेगं य / तित्थोगालीए संखा एसा भणिया उ अंकेणं / / - (गाथा 1261) उपरोक्त गाथा के आधार पर इस ग्रन्थ की गाथा संख्या 1233 ही होनी चाहिए, लेकिन आज गाथाएँ 1261 उपलब्ध होती हैं, इसका अर्थ यह है कि किसी अन्य मुनि या विद्वान ने 28 गाथाएँ अपनी ओर से प्रक्षिप्त कर दी है। __ इसप्रकार हम देखते हैं कि तित्थोगाली प्रकीर्णक में प्राचीन जैन इतिहास का विस्तृत विवेचन हुआ है / विशेष रूप से यह वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभ से लेकर चौबीसवें तीर्थकर महावीर तक का विवरण तो प्रस्तुत करता ही है साथ ही महावीर के पश्चात् के लगभग एक हजार वर्ष के इतिहास को भी प्रस्तुत करता है / इसलिए प्राचीन जैन-इतिहास के अध्ययन की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। प्रवक्ता सुरेन्द्र कुमार सांड शिक्षा सोसाइटी . द्वारा-अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैनसंघ बीकानेर (राज.)
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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