SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीनतम प्रकीर्णक : ऋषिभाषित : 219 कह रहे हैं, वे मूलतः अन्य परम्पराओं में प्रचलित रही हों / अतः ऋषिभाषित के ऋषियों के उपदेशों की प्रामाणिकता को पूर्णतः निरस्त नहीं किया जा सकता / अधिक से अधिक हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि उन पर अपरोक्षरूप से जैन परम्परा का कुछ प्रभाव आ गया है / ऋषिभाषित के ऋषियों की ऐतिहासिकता का प्रश्न यह एक सुस्पष्ट तथ्य है कि ऋषिभाषित में वर्णित अधिकांश ऋषिगण जैन परम्परा से सम्बन्धित नहीं है / उनके कुछ के नामों के आगे लगे हुए ब्राह्मण, परिव्राजक आदि शब्द ही उनका जैन परम्परा से भित्र होना सूचित करता है / दूसरे देव नारद, असितदेवल, अंगिरस भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, बाहुक, विदुर, वारिषेण कृष्ण, द्वैपायन, आरुणि, उद्दालक, तारायण, ऐसे नाम हैं जो वैदिक परम्परा में सुप्रसिद्ध रहे हैं और आज भी उनके उपदेश उपनिषदों, महाभारत एवं पुराणों में सुरक्षित हैं / इनमें से देवनारद, असितदेवल, अंगिरस भारद्वाज, द्वैपायन के उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त सूत्रकृतांग, औपपातिक, अंतकृतदशा आदि जैन ग्रन्थों में तथा बौद्ध त्रिपिटक साहित्य में भी मिलते हैं / इसीप्रकार वज्जीयपुत्त, महाकाश्यप और सारिपुत्त बौद्ध परम्परा के सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं और उनका उल्लेख त्रिपिटक साहित्य में उपलब्ध है / मंखलिपुत्त, रामपुत्त, अम्बड, संजय (वेलट्ठिपुत्त) आदि ऐसे नाम हैं जो स्वतन्त्र श्रमण परम्पराओं से सम्बन्धित हैं और इनके उल्लेख जैन और बौद्ध परम्पराओं में हमें स्पष्ट रूप से मिलते हैं / ऋषिभाषित के जिन ऋषियों के उल्लेख बौद्ध साहित्य में हमें मिलते हैं उस पर विस्तृत चर्चा प्रो० सी० एस० उपासक ने अपने लेख 'इसिभासियाइं एण्ड पालि बुद्धिस्ट टेक्स्ट्स : ए स्टडी' में किया है / यह लेख पं० दलसुखभाई अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित हुआ है / पार्श्व और वर्द्धमान जैन परम्परा के तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर के रूप में सुस्पष्ट रूप से मान्य हैं / आर्द्रक का उल्लेख ऋषिभाषित के अतिरिक्त सूत्रकृतांग में है / इसके अतिरिक्त वल्कलचीरी, कूर्मापुत्र, तेतलिपुत्र, भयालि, इन्द्रनाग आदि ऐसे नाम हैं जिनमें अधिकांश का उल्लेख जैन परम्परा के इसिमण्डल एवं अन्य ग्रन्थों में मिल जाता है / वल्कलचीरी, कूर्मापुत्र आदि का उल्लेख बौद्ध परम्परा में भी है। किन्तु जिनका उल्लेख जैन और बौद्ध परम्परा में अन्यत्र नहीं मिलता है, उन्हें भी पूर्णतया काल्पनिक व्यक्ति नहीं कह सकते / यदि हम ऋषिभाषित के ऋषियों की सम्पूर्ण सूची का अवलोकन करें तो केवल सोम, यम, वरुण, वायु और वैश्रमण, ऐसे नाम हैं जिन्हें काल्पनिक कहा जा सकता है क्योंकि जैन, बौद्ध और वैदिक तीनों ही परम्पराएँ इन्हें सामान्यतया लोकपाल के रूप में ही स्वीकार करती हैं किन्तु इनमें भी महाभारत में वायु का उल्लेख एक ऋषि के रूप में मिलता है / यम को आवश्यक चूर्णि में यमदग्नि ऋषि का पिता कहा गया है / अतः इस सम्भावना को पूरी तरह निरस्त नहीं किया जा सकता कि यम कोई ऋषि रहे हों / यद्यपि उपनिषदों में भी यम को लोकपाल के रूप चित्रित किया गया है किन्तु इतना तो निश्चित है कि ये एक उपदेष्टा हैं / यम और नचिकेता का संवाद औपनिषदिक परम्परा में सुप्रसिद्ध है / वरुण और वैश्रमण को भी वैदिक परम्परा में मंत्रोपदेष्टा के रूप में स्वीकार किया गया है / यह सम्भव है कि सोम, यम, वरुण और वैश्रमण
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy