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________________ प्राचीनतम प्रकीर्णक : ऋषिभाषित : 213 के ऋषियों की पहचान का एक प्रयत्न शुब्रिग ने अपनी 'इसिभासियाई' की भूमिका में किया है / 3deg उनके अनुसार याज्ञवल्क्य, बाहुक (नल), अरुण, महाशालपुत्र या आरुणि और उद्दालक स्पष्ट रूप से औपनिषदिक परम्परा के प्रतीत होते हैं / इसके साथ ही पिंग, ऋषिगिरि और श्रीगिरि इन तीनों को ब्राह्मण परिव्राजक और अम्बड को परिव्राजक कहा गया है। इसलिए ये चारों भी ब्राह्मण परम्परा से सम्बन्धित हैं / यौगन्धरायण, जिनका अम्बड से संवाद हुआ है, वे भी ब्राह्मण परम्परा के ऋषि प्रतीत होते हैं / इसीप्रकार मधुरायण, आर्यायण, तारायण (नारायण) भी ब्राह्मण परम्परा से सम्बन्धित लगते हैं / अंगिरस और वारिषेण कृष्ण भी ब्राह्मण परम्परा से सम्बन्धित माने जाते हैं / शुब्रिग महाकाश्यप, सारिपुत्त और वज्जियपुत्त को बौद्ध परम्परा से सम्बन्धित मानते हैं / उनकी यह मान्यता मेरी दृष्टि से समुचित भी है / यद्यपि शुबिंग ने पुष्पशालपुत्र, केतलीपुत्र, विदु, गाथापतिपुत्र तरुण, हरिगिरि, मातंग और वायु को प्रमाण के अभाव में किसी परम्परा से जोड़ने में असमर्थता व्यक्त की है। यदि हम शुब्रिग के उपर्युक्त दृष्टिकोण को उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर रखते हैं तो नारद, असित देवल, अंगिरस भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, उद्दालक, पिंग, तारायण को स्पष्ट रूप से वैदिक या औपनिषदिक परम्परा के ऋषि मान सकते हैं / इसीप्रकार महाकाश्यप, सारिपुत्त और वज्जीयपुत्त को बौद्ध परम्परा का मानने में भी हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। पार्व और वर्धमान स्पष्ट रूप से जैन परम्परा के माने जा सकते हैं / मंखलिपुत्र स्पष्ट रूप से आजीवक परम्परा के हैं / शेष नामों के सम्बन्ध में हमें अनेक पहलुओं से विचार करना होंगा / यद्यपि पुष्पशालपुत्त, वक्कलचीरी, कुम्मापुत्त, केतलिपुत्त, भयालि, मधुरायण, सौर्यायण, आर्यायण, गर्दभालि, गाथापतिपुत्त तरुण, वारत्रय, आर्द्रक, वायु, संजय, इन्द्रनाग, सोम, यम, वरुण, वैश्रमण आदि की ऐतिहासिकता और परम्परा का निश्चय करना कठिन ऋषिभाषित के ऋषि प्रत्येकबुद्ध क्यों ? * ऋषिभाषित के मलपाठ में केतलिपत्र को ऋषि, अम्बड को परिव्राजक, पिंग, ऋषिगिरि एवं श्री गिरि को ब्राह्मण (माहण) परिव्राजक अर्हत् ऋषि, सारिपुत्र को बुद्ध अर्हत् * ऋषि तथा शेष सभी को अर्हत् ऋषि के नाम से सम्बोधित किया गया / उत्कट (उत्कल) नामक अध्ययन में वक्ता के नाम का उल्लेख ही नहीं है, अत : उसके साथ कोई विशेषण होने का प्रश्न ही नहीं उठता है / यद्यपि ऋषिभाषित के अन्त में प्राप्त होने वाली संग्रहणी गाथा३१ एवं ऋषिमण्डल३२ में इन सबको प्रत्येकबुद्ध कहा गया है तथा यह भी उल्लेख है कि इनमें से बीस अरिष्टनेमि के, पन्द्रह पार्श्वनाथ के और शेष महावीर के शासन में हुए है। किन्तु, यह गाथा परवर्ती है और बाद में जोड़ी गई लगती है / मूलपाठ में कहीं भी इनका प्रत्येकबुद्ध के रूप में उल्लेख नहीं है / समवायांग में ऋषिभाषित की चर्चा के प्रसंग में इन्हें मात्र देवलोक से च्युत कहा गया है, प्रत्येकबुद्ध नहीं कहा गया है / यद्यपि समवायांग में ही प्रश्नव्याकरण की विषयवस्तु का विवरण देते समय यह कहा गया है कि इसमें स्वसमय
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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