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________________ समाधिमरण सम्बन्धी प्रकीर्णकों की विषयवस्तु * डॉ० अशोक कुमार सिंह वर्तमान में श्वेताम्बर मान्य आगम साहित्य में प्रकीर्णक भी समाविष्ट हैं / प्रकीर्णक शब्द 'प्र' उपसर्ग पूर्वक 'कृ' धातु से 'क्त' प्रत्यय सहित निष्पन्न प्रकीर्ण' शब्द से 'कन्' प्रत्यय होने पर बना है / इसका शाब्दिक अर्थ है-नाना संग्रह, फुटकर वस्तुओं का संग्रह और विविध वस्तुओं का अध्याय / वस्तुतः विविध विषयों पर संकलित ग्रन्थ ही प्रकीर्णक हैं / कुछ प्रकीर्णकों में ग्रन्थकारों ने इस तथ्य का स्पष्ट उल्लेख भी किया है कि उन्होंने श्रुत के अनुसार अंग, उपांग आदि ग्रन्थों के आधार पर प्रकीर्णकों की रचना की है / टीकाकार मलयगिरि के अनुसार भी तीर्थङ्करों द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण कर श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते थे। मुनि डा० नगराज के मत में प्रकीर्णक उन ग्रन्थों को कहा जाता है जो तीर्थङ्करों के शिष्य, उबुधचेता श्रमणों द्वारा अध्यात्म-सम्बद्ध विषयों पर रचे जाते हैं। आचार्य देवेन्द्रमुनि के शब्दों में श्रुत का अनुसरण करके वचन कौशल से धर्म देशना आदि के प्रसंग से श्रमणों द्वारा कृत रचनायें भी प्रकीर्णक कहलाती हैं। परम्परागत मान्यता प्रत्येक श्रमण द्वारा एक प्रकीर्णक रचने का उल्लेख करती है। इसी कारण समवायांग सूत्र में ऋषभदेव के चौरासी हजार शिष्यों के उतने ही प्रकीर्णकों का उल्लेख है। महावीर के तीर्थ में भी उनके चौदह हजार श्रमणों द्वारा इतने ही प्रकीर्णक रचने की मान्यता है / 6 ___ जहां तक प्रकीर्णकों की वास्तविक संख्या का प्रश्न है सामान्यतः केवल इन दस प्रकीर्णकों को ही आगम में समाविष्ट किया गया- 1. चतुःशरण, 2. आतुरप्रत्याख्यान, 3. महाप्रत्याख्यान, 4 . भक्तपरिज्ञा, 5. तंदुलवैचारिक, 6. संस्तारक, 7. गच्छाचार, 8. गणिविद्या, 9. देवेन्द्रस्तव, और 10. मरणसमाधि / नन्दीसूत्र में भी ये दस प्रकीर्णक उल्लेखित हैं-१. चतुःशरण, 2. आतुरप्रत्याख्यान, 3. भक्तपरिज्ञा, 4. संस्तारक, 5. तंदुलवैचारिक, 6. चन्द्रावेध्यक, 7. देवेन्द्रस्तव, 8. गणिविद्या, 9. महाप्रत्याख्यान और 10. वीरस्तव / आज मान्य दस प्रकीर्णकों में भी समाविष्ट ग्रन्थों में एकरूपता नहीं है / कहीं-कहीं मरणसमाधि एवं गच्छाचार के स्थान पर चन्द्रवेध्यक एवं वीरस्तव दस प्रकीर्णकों में सम्मिलित हैं तो किन्हीं ग्रन्थों में देवेन्द्रस्तव एवं वीरस्तव को सम्मिलित कर दिया गया है। पूज्य मुनि पुण्यविजयजी ने अपनी प्रस्तावना में बाईस प्रकीर्णकों का उल्लेख किया है। ये 22 प्रकीर्णक निम्न हैं : 1. चतुःशरण, 2. आतुरप्रत्याख्यान, 3. भक्तपरिज्ञा, 4. संस्तारक, 5. तंदुलवैचारिक, 6. चन्द्रावेध्यक, 7. देवेन्द्रस्तव, 8. गणिविद्या, 9. महाप्रत्याख्यान, 10. वीरस्तव, 11. ऋषिभाषित, 12. अजीवकल्प, 13. गच्छाचार, १४.मरणसमाधि, १५.तित्थोगाली, 16. आराधनापताका, 17. द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, 18. ज्योतिषकरण्डक, 19. अंगविद्या,
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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