SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणिविद्या प्रकीर्णक एवं उसका अन्य प्राचीन ग्रन्थों में स्थान : 185 1. दिवस एक माह में 30 दिन, 2 पक्ष, प्रत्येक पक्ष के 15 दिन बतलाये गये हैं / इस ग्रन्थ में दिन और रात्रि की बलाबल विधि का निरुपण किया गया है / 2. तिथिद्वार इस द्वार में चन्द्रमा की कला को तिथिमानकर कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की 1515 तिथियों का वर्णन किया गया है / इन्हीं तिथियों की नन्दा, भद्रा, विजया आदि संज्ञाएँ बतलाई गयी हैं। यहाँ यह बतलाया गया है कि कौन-कौनसी तिथियाँ कल्याणकारी हैं एवं कौनसी तिथियाँ विघ्नयक्त हैं / कौनसी संज्ञा में श्रमणों को दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए, कौनसी तिथियों में वस्त्र धारण करने चाहिये एवं कौनसी तिथियों में अनशन करना चाहिए। 3. नक्षत्रद्वार ताराओं के समूह के रूप में कहीं-कहीं पर अश्व, हाथी, सर्प, हाथ आदि की जो आकृतियाँ बन जाती हैं, वे नक्षत्र कहलाते हैं / आकाश में ग्रहों कि दूरी नक्षत्रों से ज्ञात की जाती है / ग्रन्थ में 27 नक्षत्रों का उल्लेख प्राप्त होता है / इनमें मुक्ति के लिए उपयोगी, मार्ग में ठहरने के लिए उपयोगी, खाने के लिए उपयोगी, पदोपगमन के लिये उपयोगी, लोच के लिये उपयोगी तथा गणि एवं वाचक पद के लिए उपयोगी नक्षत्रों का विधान किया गया 4. करणद्वार .. तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है / गणिविद्या में बव, बालव, कालव आदि 11 करणों का उल्लेख मिलता है / इसी ग्रन्थ में इनका फल बतलाते हुए कहा गया है कि बव, बालव, कालव, वणिज, नाग एवं चतुष्पद प्रव्रज्या के लिए उपयोगी हैं / बवकरण व्रत की स्थापना एवं गणिवाचकों की विनय हेतु उत्तम है / शकुनि एवं विष्टिकरण पादोपगमन हेतु शुभ हैं। 5. ग्रह दिवसद्वार - रवि से शनि 7 ग्रह दिवस हैं / गणिविद्या में कहा गया है कि गुरू, शुक्र एवं सोम ग्रह दिवसों में दीक्षाग्रहण, व्रतों की प्रतिस्थापना एवं गणिवाचकों की विनय करनी चाहिए। रवि, मंगल एवं शनिवार को संयम एवं पादोपगमन क्रियाओं को करना चाहिये। 6. मुहूर्तद्वार तीस मुहूर्त का एक दिन रात होता है / एक दिन में 15 मुहूर्त दिन के एवं 15 मुहूर्त रात्रि के बतलाये गये हैं यहाँ मुहूर्तो के नाम एवं दिन रात के विभिन्न मुहूर्तों में अलग-अलग कार्यों को करने का समय निश्चित किया गया है / 10 7. शकुनबलद्वार गणिविद्या में पुर्लिंग नाम वाले, स्त्रीलिंग नाम वाले, नपुंसक नाम वाले, मिश्र नाम
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy