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________________ गच्छाचार (प्रकीर्णक ) का समीक्षात्मक अध्ययन : 169 परम्परा के भी जो प्राचीन अभिलेख एवं ग्रन्थ पाये जाते हैं, उनमें भी गण, कुल, शाखा एवं अन्वय के उल्लेख ही मिलते हैं / गच्छ के उल्लेख तो ९वीं शताब्दी के बाद के ही मिलते हैं 12 / इस आधार पर हम निश्चित रूप से इतना तो कह ही सकते हैं कि 'गच्छ' शब्द का मुनियों के समूह अर्थ में प्रयोग छठी शताब्दी के बाद ही कभी प्रारम्भ हुआ है। __ अभिलेखीय साक्ष्य की दृष्टि से प्राचीनतम अभिलेख वि०सं०१०११ अर्थात् ईस्वी सन् 954 का उपलब्ध होता है जिसमें 'बृहद्गच्छ' का नामोल्लेख हुआ है 13 / साहित्यिक साक्ष्य के रूप में गच्छ' शब्द का इस अर्थ में उल्लेख हमें सर्वप्रथम ओघनियुक्ति (लगभग ६ठी-७वीं शताब्दी) में मिलता है जहाँ कहा गया है-"जिसप्रकार समुद्र में स्थित समुद्र की लहरों के थपेड़ों को सहन नहीं करने वाली सखाभिलाषी मछली किनारे चली जाती है और मृत्यु प्राप्त करती है उसीप्रकार गच्छ रूपी समुद्र में स्थित सुखाभिलाषी साधक भी गुरूजनों की प्रेरणा आदि को त्यागकर गच्छ से बाहर चला जाता है तो वह अवश्य ही विनाश को प्राप्त होता है"१४ / यद्यपि ओघनियुक्ति का उल्लेख आवश्यकनियुक्ति में उल्लिखित दस नियुक्तियों में नहीं है क्योंकि सामान्यतः यह माना जाता है कि ओघनियुक्ति आवश्यकनियुक्ति का ही एक विभाग है, किन्तु वर्तमान में उपलब्ध ओघनियुक्ति की सभी गाथायें आवश्यकनियुक्ति में रही हों, ऐसा प्रतीत नहीं होता / हमारी दृष्टि में ओघनियुक्ति की अधिकांश गाथायें आवश्यक मूल भाष्य और विशेषावश्यक भाष्य के रचनाकाल के मध्य कभी निर्मित हुई हैं। ओघनियुक्ति के पश्चात् गच्छ' का उल्लेख हमें सर्वप्रथम हरिभद्र के पंचवस्तु (८वीं शताब्दी) में मिलता है, जहाँ न केवल 'गच्छ' शब्द का प्रयोग मुनियों के समूह विशेष के लिए हुआ है, अपितु उसमें 'गच्छ' किसे कहते हैं ? यह भी स्पष्ट किया गया है / हरिभद्रसरि के अनुसार एक गुरु के शिष्यों का समूह गच्छ कहलाता है 15 / वैसे शाब्दिक दृष्टि से 'गच्छ' शब्द का अर्थ एक साथ विहार आदि करने वाले मुनियों के समूह से किया जाता है और यह भी निश्चित है कि इस अर्थ में 'गच्छ' शब्द का प्रचलन ७वीं शताब्दी के बाद ही कभी प्रारम्भ हुआ होगा, क्योंकि इससे पूर्व का ऐसा कोई भी अभिलेखीय अथवा साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता जिसमें 'गच्छ' शब्द का प्रयोग मुनियों के समूह के लिए हुआ हो। प्राचीन काल में तो मुनि संघ के वर्गीकरण के लिए गण, शाखा, कुल और अन्वय के ही उल्लेख मिलते हैं / कल्पसूत्र स्थविरावली के अन्तिम भाग में वीर निर्वाण के लगभग६०० वर्ष पश्चात निवृत्तिकुल, चन्द्रकुल, विद्याधरकुल और नागेन्द्रकुल-इन चार कुलों से निवृत्तिगच्छ, चन्द्रगच्छ आदि गच्छ निकले। इसप्रकार प्राचीन काल में जिन्हें 'कुल' कहा जाता था वे ही आगे चलकर 'गच्छ' नाम से अभिहित किये जाने लगे / जहाँ प्राचीन . समय में 'गच्छ' शब्द एक साथ विहार (गमन) करने वाले मुनियों के समूह का सूचक था वहाँ आगे चलकर वह एक गुरु की शिष्य परम्परा का सूचक बन गया / इसप्रकार शनैः शनैः 'गच्छ' शब्द ने 'कुल' का स्थान ग्रहण कर लिया / यद्यपि ८वीं-९वीं शताब्दी तक 'गण', 'शाखा' और 'कुल' शब्दों के प्रयोग प्रचलन में रहे, किन्तु धीरे-धीरे 'गच्छ' शब्द का अर्थ व्यापक हो गया और 'गण', 'शाखा' तथा 'कुल' शब्द गौण हो गये / आज भी चाहे श्वेताम्बर
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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