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________________ 92 : डॉ० धर्मचन्द जैन गया है / " आराधना भी अभ्युद्यत मरण की तैयारी है / जो पंडितमरण पूर्वक मरते हैं वे आराधक कहलाते हैं तथा जो अज्ञानपूर्वक मरण करते हैं वे अनाराधक कहलाते हैं। दीर्घकाल तक पाँच समिति और तीन गुप्तियों का पालन करने वाला मुनि भी यदि मृत्यु के .. समय विराधना करता है तो उसे धर्म का अनाराधक कहा जाता है तथा अत्यधिक मोही व्यक्ति भी यदि जीवन की सन्ध्यावेला में संयमी और अप्रमत्त हो जाता है तो उसे आराधक. कहा जाता है / 15 दूसरे शब्दों में जो समाधिपूर्वक मरता है वह आराधक एवं जो असमाधि पूर्वक मरता है वह अनाराधक कहा गया है। मरण के प्रकार आतुरप्रत्याख्यान आदि प्रकीर्णकों में स्थानाङ्ग सूत्र की भाँति मरण के तीन प्रकार निरूपित हैं - 1. बालमरण, 2. बालपंडितमरण और 3. पंडितमरण / 16 आराधनापताका में आचार्य वीरभद्र ने मरण के पाँच प्रकार बतलाए हैं- 1. पंडितपंडितमरण, 2. पंडितमरण, 3. बालपंडितमरण, 4. बालमरण और 5. बालबालमरण / 17 केवलियों का मरण पंडितपंडितमरण कहलाता है / मुनियों का भक्तपरिज्ञा आदि मरण पंडितमरण है / देशविरत एवं अविरत सम्यग्दृष्टियों का मरण बालपंडितमरण कहलाता है / उपशम युक्त मिथ्यादृष्टियों का मरण बालमरण है तथा कषाय से कलुषित जीवों का जघन्य मरण बालबालमरण कहलाता है / इनमें से प्रथम तीन मरण सम्यग्दृष्टियों को होते हैं अतः वे तीनों पंडितमरण की श्रेणी में आते हैं तथा अंतिम दो मरण मिध्यादृष्टियों को होने से बालमरण की श्रेणी में आते हैं।१८ बालमरण के भेद . बालमरण के भेदों का निरूपण प्रकीर्णकों में नहीं है किन्तु जल प्रवेश, अग्नि प्रवेश, विषभक्षण आदि के आधार पर वह अनेक प्रकार का हो सकता है / आतुरप्रत्याख्यान में कुछ प्रकारों का उल्लेख किया है / 19 आधुनिक काल में तो बालमरण के अनेक रूप हैं, विशेषतः अकालमृत्यु में अकस्मात् जो मरण होता है वह प्रायः बालमरण ही होता है / इसके अन्तर्गत विमान दुर्घटना, रेल दुर्घटना, सड़क दुर्घटना, भूकम्प, बाढ़, बिजली के झटके, आग लगने आदि के कारण होने वाली मृत्यु एवं शस्त्राशस्त्र के द्वारा हुई मृत्यु सम्मिलित है / अकालमृत्यु आगमसम्मत है / स्थानाङ्गसूत्र में आयुभेद के दिए गए सात कारण२° एवं तत्त्वार्थसूत्र में प्रतिपादित अपवर्त्य आयु इसके प्रमाण हैं / साधारण रोग या असाध्य रोगों के कारण भी अज्ञान दशा में जो मृत्यु होती है वह बालमरण की श्रेणी में आती है। पंडितमरण के भेद मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य पहलू है, इससे कोई बच नहीं सकता / इसलिए प्रकीर्णकों का संदेश है कि जब मरना है तो धीरतापूर्वक पंडितमरण से ही क्यों न मरा जाय। वह पंडितमरण भी तीन प्रकार का प्रतिपादित है-१. भक्तपरिज्ञामरण, 2. इंगिनीमरण और 3. पादोपगमन या प्रायोग्यमरण / 21
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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