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________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा * डॉ० धर्मचन्द जैन आध्यात्मिक साधना से संपृक्त प्रकीर्णक साहित्य में समाधिमरण प्रमुख प्रतिपाद्य रहा है / महाप्रत्याख्यान, आतुरप्रत्याख्यान (वीरभद्र), संस्तारक, संलेखनाश्रुत, भक्तपरिज्ञा (वीरभद्र), मरणविभक्ति, मरणविशुद्धि, मरणसमाधि और आराधनापताका आदि अनेक आराधनाएं समाधिमरण का ही प्रतिपादन करती हैं / समाधिमरण से सम्बद्ध आठ प्रकीर्णकों को संकलित कर उसे मरणविभक्ति या मरणसमाधि नाम दिया गया है / इस संकलन में जो प्रकीर्णक संग्रहीत हैं, वे हैं-मरणविभक्ति, मरणविशुद्धि, मरणसमाधि, संलेखना श्रुत, भक्तपरिज्ञा, आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान और आराधना प्रकीर्णक / ये समस्त प्रकीर्णक समाधिपूर्वक मरण करने की प्रक्रिया एवं उसके महत्त्व का प्रतिपादन करते हैं / एक प्रकीर्णक है-चन्द्रवेध्यक / इस प्रकीर्णक में विनय, आचार्य, शिष्य, विनयनिग्रह, ज्ञान और चारित्र गुणों का विवेचन करने के साथ मरणगुण पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया है / ऋषिभाषित प्रकीर्णक के तेवीसवें अध्ययन में भी मरण की चर्चा है / वीरभद्र (१०वीं शती) की आराधनापताका, अभयदेवसूरि (११वीं शती) का आराधना प्रकरण, जिनभद्र का कवचप्रकरण एक अज्ञातकर्तृक आराधनापताका तथा पर्यन्ताराधना आदि अनेक आराधनाएं भी प्रकीर्णकों के रूप में स्वीकार की गई हैं / इसप्रकार प्रकीर्णकों की विषयवस्तु में मरण अथवा समाधिमरण को प्रमुख स्थान मिला है। प्रकीर्णकों में निरूपित समाधिमरण के वैशिष्टय को जानने से पूर्व यह विचार कर लिया जाय कि अंग-आगमों में इसके सन्दर्भ में क्या विवेचन हुआ है / समवायांगसूत्र में मरण के 17 प्रकार निरूपित हैं-आवीचिमरण, अवधिमरण आदि / इन सतरह प्रकारों में बालमरण, पंडितमरण, बालपंडितमरण, केवलिमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण और पादपोपगमन मरण भी समाहित हैं / ये भेद मरण के समाधिरूप एवं असमाधिरूप दोनों का प्रतिपादन करते हैं समवायांगसूत्र में ही समाधि के दस स्थानों का कथन है, उनमें * केवलिमरण को भी समाधि का एक स्थान माना गया है। यह केवलिमरण व्यक्ति को सब प्रकार के दुःखों से रहित कर देता है, इसलिए समाधिरूप है / भगवतीसूत्र में मरण के बालमरण एवं पण्डितमरण ये दो भेद बतलाकर बालमरण के वलयमरण, वशार्तमरण आदि 12 भेद किए गए हैं जो मरण के विभित्र निमित्तों के द्योतक हैं, यथा गिरिपतन, तरुपतन, जल प्रवेश, अग्नि प्रवेश, विषभक्षण आदि / वहां पंडितमरण के प्रायोपगमन एवं भक्त प्रत्याख्यान ये दो भेद किए गए हैं / इंगिनीमरण* का समावेश वहां भक्तप्रत्याख्यान में * जैन आगम साहित्य में प्रस्तुत शब्द के तीन रूप मिलते हैं और ये तीनों ही रूप समानार्थक है. (1) पादपोपगमन, (2) पादोपगमन और (3) प्रायोपगमन | ** अवधेय है कि जैन आगम साहित्य में प्रस्तुत शब्द के भी तीन रूप मिलते हैं और ये तीनों ही रूप समानार्थक है-(१) इंगिनीमरण, (2) इंगितमरण और (3) इंगिणीमरण | .-सम्पादक
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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