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________________ पुढवी य सक्करा बालुया य, उवले सिला य लोणूसे। अय-तम्ब-तउय-सीसग, रुप्प-सुवण्णे य वइरे य। आगे की गाथाओं में विभिन्न रत्न-मणियों का वर्णन है। इस प्रकार खनिजों के अन्तर्गत खारी मिट्टी, लोहा, ताम्बा, सीसा, पारा, मंगा, चांदी, सुवर्ण, वज्र, हरिताल, मनसिल, शस्यक, अंजन, प्रवाल, अभ्रपटल, अभ्रमालुक, गोमेदक, रुचक, लोहिताक्ष, अंकरत्न, स्फटिक, लोहिताक्ष रत्न, मरकत रत्न, मसारगल्ल रत्न, भुजमोचक रत्न, वैडूर्य रत्न, चन्दन रत्न, गेरुक रत्न, हंस रत्न, पुलक रत्न, सौगंधिक रत्न, इन्द्रनील मणि, जलकान्त मणि, सूर्यकान्त मणि आदि अनेक नाम प्राप्त होते हैं। खनिज सम्पदा पर मुख्य रूप से धातु उद्योग और रत्न उद्योग निर्भर थे। . जलसम्पदा __ वह समय प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों का समय था। उनका अंधाधुंध दोहन नहीं होने से पर्यावरण उत्तम था। सघन और हरे-भरे वन थे। प्रचुर शुद्ध जल उपलब्ध था। कृषि के साथ ही जल को कृषि के लिए संगृहीत करके उपयोग करने की कला मानव ने सीख ली थी। सिंचाई के लिए पुष्करिणी, बावड़ी, कुआँ, तालाब, सरोवर आदि के अलावा नदियों पर बांध बनाने के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं। महाक्षत्रप ने चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में बनवाई गई सुदर्शन झील और उस पर बने बांध का जिर्णोद्धार कराया था। इससे स्पष्ट होता है कि मौर्य काल में सिंचाई के लिए झीलों और बांधों का निर्माण होता था। नदियों का उपयोग कृषि के अलावा यातायात में भी होता था।” वर्तमान में जल-सम्पदा का मत्स्याखेट के रूप में दुरुपयोग किया जाता है। विपाक-सूत्र में उसे नरक (दु:ख) का कारण बताते हुए उसका स्पष्ट निषेध किया है। इस प्रकार उत्पादन में भूमि और भूमि से सम्बन्धित वन, खनिज, जल आदि का मुख्य स्थान था। खेती-बाड़ी करने के लिए लोग वन-भूमि और ऊसरभूमि को कृषि योग्य भूमि में बदल देते थे।' कृषि और आवास दोनों के लिए बहुत जमीन उपलब्ध थी। भू-स्वामित्व . भूमि पर तीन प्रकार के स्वामित्व थे - व्यक्तिगत, सामूहिक और राजकीय। श्रावक अपने इच्छा-परिमाण व्रत के अन्तर्गत खेत-वत्थु की मर्यादा करता है। भगवान महावीर का प्रमुख श्रावक आनन्द गाथापति 500 हल भूमि का स्वामी था। व्यक्ति की सम्पत्ति के अन्तर्गत भूमि की गणना उस समय भी होती थी। इसलिए भूमि का माप, क्रय-विक्रय, दान आदि सब होता था। (54)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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