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________________ धनोपार्जन के मुख्य साधन ___ अर्थशास्त्र में धनोपार्जन के साधनों के अन्तर्गत भूमि, श्रम, पूंजी और प्रबन्ध को परिगणित किया गया है। वृक्ष, वन, पहाड़, जल, निर्झर, खेती-बाड़ी, खनिज सब कुछ भूमि के आश्रित है। यदि यह कह दिया जाय कि अर्थोपार्जन का एकमात्र मूलभूत साधन भूमि ही है तो गलत नहीं होगा। क्यों कि श्रम, पूंजी और प्रबन्ध तो भूमि और प्रकृति में उपलब्ध चीजों को उचित प्रकार से प्राप्त करने के माध्यम हैं। -- धनोपार्जन का दूसरा मुख्य साधन है - श्रम/परिश्रम/पुरुषार्थ। श्रम के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता। प्राप्त का समुचित उपयोग भी अंम के बगैर सम्भव नहीं। श्रमण संस्कृति का तो आरम्भ ही 'श्रम' से होता है। पर्याप्त संसाधन और श्रम भी हो, लेकिन पूंजी के बिना आर्थिक चक्र को गतिशील नहीं रखा जा सकता है। पूंजी; भूमि, श्रम और प्रबन्ध के आर्थिकीकरण का मुख्य घटक है। प्रबन्ध के अन्तर्गत नियोजन, संगठन, समन्वय, नियंत्रण, निर्णयन, अभिप्रेरण, विपणन आदि बातों का समावेश होता है। आगम-ग्रन्थों में अर्थोपार्जन के इन सभी घटकों की पर्याप्त चर्चा प्राप्त होती है। परन्तु उनका अर्थशास्त्रीय दृष्टि से वर्गीकरण और विवेचन नहीं हैं। ___जैसा कि बताया जा चुका है, भूमि मूलभूत साधन है। यहाँ सभी प्राकृतिक संसाधनों को भूमि के अन्तर्गत समाविष्ट किया गया है। इसके अन्तर्गत मुख्यतः वन सम्पदा, खनिज सम्पदा और जल सम्पदा को लिया जाता है। जैनागमों में षट्कायिक जीवों की रक्षा के सन्देश में इन सम्पदाओं के रक्षण व संरक्षण का भाव और संकल्प विद्यमान है। वन सम्पदा आगम युग का भारत विपुल जंगलों से परिपूर्ण था। वन आर्थिक जीवन का आधार तो थे ही, आत्म-साधना के लिए भी उपयुक्त माने जाते थे। व्याख्याप्रज्ञप्ति' और प्रज्ञापना में विशाल वनखण्डों के उल्लेख मिलते हैं। औपपातिक सूत्र में वनखण्ड का वर्णन करते हुए कहा गया है कि - पूर्णभद्र चैत्य चारों ओर से विशाल वनखण्ड से घिरा हुआ था। वृक्षों की अत्यधिक सघनता के कारण वह वनखण्ड काला, काली आभा वाला, नीला, नीली आभा वाला, हरी, हरी आभा वाला दिखाई (52)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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