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________________ को अर्थशास्त्र और अन्य विद्याओं की शिक्षा दी थी। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार भरत का सेनापति सुषेण अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र में निपुण था।" प्रश्नव्याकरण से पता चलता है कि उस समय 'अत्थसत्थ' अर्थात् अर्थशास्त्र विषयक ग्रन्थों की रचना होती थी। ज्ञाताधर्मकथांग में राजा श्रेणिक के पुत्र अभय कुमार को अर्थशास्त्र का ज्ञाता बताया गया है। अभयकुमार अर्थशास्त्र के साथ-साथ व्यवसाय-नीति और न्याय-नीति में भी निष्णात थे। वे राज्य, राष्ट्र, कोष, भण्डार, सेना, वाहन, नगर, महल तथा अन्त:पुर सभी की व्यवस्था देखते थे। वे अपने समय के श्रेष्ठ प्रबन्धक थे। नन्दी सूत्र में बताया गया है कि विनय से उत्पन्न बुद्धि से व्यक्ति अर्थशास्त्र और अन्य लौकिक शास्त्रों में निपुण हो जाता है। बृहत्कल्पभाष्य में बताया गया है कि जीविकोपार्जन के लिए गृहस्थ 'अत्थसत्थ' का अध्ययन करते थे' दशवैकालिक चूर्णि में चाणक्य के अर्थोपार्जन के नियमों का उल्लेख प्राप्त होता है। निशीथ चूर्णि में धनार्जन की प्रक्रिया को 'अठ्ठप्पत्ति' अर्थात् अर्थप्राप्ति कहा गया है। ___अर्थशास्त्र के रचयिता आचार्य कौटिल्य (ई. पूर्व तीसरी सदी) से पूर्व अनेक प्राचीन आचायों और विद्वानों ने अर्थशास्त्रों की रचना की थी। कौटिल्य (चाणक्य) अपने अर्थशास्त्र में स्पष्ट लिखते हैं कि प्राचीन आचार्यों ने जिन अर्थशास्त्रों की रचना की थी, उन सबका सार लेकर कौटिल्य ने इस अर्थशास्त्र की रचना की है। इससे स्पष्ट होता है कि भगवान महावीर के समय में अर्थशास्त्र पर एक से अधिक ग्रन्थ विद्यमान थे। अर्थशास्त्र था तो समाज, राजनीति और जीवन के लिए आवश्यक सभी विधाओं की जानकारी और सुविकसित व्यवस्थाएँ भी थीं। आगम साहित्य में वर्णित धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक जीवन से यह तथ्य सुस्पष्ट होता है। वसुदेवहिण्डी में उल्लेख है कि कौशाम्बीवासी . ' अगड़दत्त अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए आचार्य दृढ़प्रहरी के पास गया था जैन परम्परा/प्राकृत साहित्य में आर्थिक पक्ष का जितना वर्णन है, सम्भवतः अन्य किसी साहित्य में नहीं है। स्पष्ट है, तत्कालीन समय में अर्थ पर विशद् विमर्श हुआ था। फलस्वरूप अर्थशास्त्र जैसा एक सम्पूर्ण विषय भी उस समय था। (39)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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