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________________ की उन घटनाओं पर विचार किया गया है, जिनका आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्व है। द्वितीय परिच्छेद में अपरिग्रह की चर्चा है। अपरिग्रह आगमिक अर्थशास्त्र का मूल व्रत है। अचौर्य इसका सहवर्ती है। अपरिग्रह और अचौर्य की मूल भावना पर आधारित समाज-व्यवस्था से आधुनिक आर्थिक सामाजिक विचारक भी आकर्षित हुए हैं। अपरिग्रह का व्रत व्यक्ति की आन्तरिक रिक्तता को भरता है। उपभोगपरिभोग परिमाण और इच्छा-परिमाण इसके संचालन में सहायक बनते हैं। हिंसा की मुख्य वजह परिग्रह है, इसलिए अपरिग्रह अहिंसा और अहिंसक तथा समतामय समाज व्यवस्था का आधार है। आगम ग्रन्थों में परिग्रह के तीस नाम बताकर उसे हर कोण और हर स्तर पर छोड़ने की सलाह दी गई है। अपरिग्रह अप्रमाद और कर्तव्यनिष्ठा का प्रेरक तत्व है, इसलिए वह विकास का कारण है। यह व्रत व्यक्तित्व रूपान्तरण से व्यवस्था परिवर्तन में सहायक बनता है। मध्यकाल पर प्रभाव भगवान महावीर के विचारों से मानव के व्यक्तित्व और समाज की व्यवस्थाओं में क्रान्तिकारी तब्दीलियाँ हो रही थीं। उनका प्रभाव अनेक रूपों में आगे से आगे बढ़ रहा था। प्रभावशाली मौर्य साम्राज्य के संचालनकर्ता चन्द्रगुप्त ने तीर्थंकर महावीर की श्रमण परम्परा में श्रमण जीवन अंगीकार कर लिया। इस घटना से जन जीवन पर भगवान महावीर के विचारों का गहरा प्रभाव हुआ। कौटिलीय अर्थशास्त्र के रचयिता महामात्य चाणक्य की स्वल्प निजी सम्पदा को आगमिक जीवन शैली के निदर्शन के रूप में समझा जा सकता है। मध्यकाल के अनेक शासक और विचारक जैन परम्परा से प्रभावित रहे। चौथी पाँचवीं सदी के ग्रन्थ वसुदेवहिण्डी में वर्णित आर्थिक जीवन पर विमर्श के बाद आठवीं सदी के ग्रन्थ कुवलयमालाकहा में वर्णित आर्थिक जीवन पर विचार किया गया है। जैन श्रमणों ने हर युग में गृहस्थ-वर्ग को अणुव्रतों की जीवन शैली बताई। व्रतों की व्यवस्था से समाज की अर्थव्यवस्था पर अनुकूल असर होना स्वाभाविक था। दसवीं सदी के विचारक सोमदेव सूरि ने 'नीतिवाक्यामृत' लिखकर समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र से नीतिशास्त्र को जोड़ा। बारहवीं सदी में कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने अपने युग को गहराई तक प्रभावित किया। अठारह देशों के सम्राट् कुमारपाल के वे सर्वेसर्वा मार्गदर्शक थे। कुमारपाल का राज्य अहिंसक राज्य-व्यवस्था और समतामय समाज-व्यवस्था का आदर्श उदाहरण है। सम्राट् कुमारपाल का जीवन अणुव्रतों से अनुप्राणित था। हर युग और कालखण्ड में भगवान महावीर के अनुयायी शासन (374)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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