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________________ कहना ठीक है कि अर्थशास्त्र एक ओर धन का अध्ययन है, दूसरी ओर, जो अधिक महत्वपूर्ण है, वह मनुष्य के अध्ययन का एक भाग है। अर्थशास्त्री ए.सी.पीगू के अनुसार आर्थिक कल्याण सामाजिक कल्याण का वह भाग है, जिसे मुद्रा के मापदण्ड से प्रत्यक्षतः अथवा अप्रत्यक्षतः मापा जा सकता है। कल्याणकारी अर्थशास्त्र का कार्य आदर्श अर्थव्यवस्था की स्थापना करना है। इस स्थापना में सैद्धान्तिक अथवा वास्तविक अर्थशास्त्र के नियमों और विश्लेषण-उपकरणों (Anlytical Tools) को काम में लिया जाता है। ऐसा लगता है कि कल्याणकारी अर्थशास्त्र पूंजीवाद और समाजवाद के बीच पुल बनना या बनाना चाहता है। परन्तु वह वैसा कर नहीं पाता है। इसलिए रोबिन्स और परेटो जैसे अर्थशास्त्रियों द्वारा 'आदर्श अर्थव्यवस्था' की स्थापना में नीतिशास्त्र के हस्तक्षेप को जरूरी नहीं मानना आश्चर्यजनक नहीं लगता है। नीतिशास्त्र को आवश्यक मानने वाले अर्थशास्त्री कल्याणकारी अर्थशास्त्र का 'पुनर्निमाण' करते हुए दो सिद्धान्त प्रतिपादित करते हैं1. क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त : इस सिद्धान्त के अनुसार कोई आर्थिक परिवर्तन किसी को हानि पहुँचाये बिना कुछ लोगों की स्थिति श्रेष्ठ बना देता है तो इस परिवर्तन को सुधार मान लेना चाहिये। आलोचकों के अनुसार यह सिद्धान्त वितरणात्मक पहलू की उपेक्षा करता है। 2. समाज कल्याण क्रिया : इस नियम के अनुसार मूल्य-निर्णयों (नैतिक मापदण्डों) को अर्थशास्त्र से बाहर निकाल दिया जाय तो अर्थशास्त्र का मूल उद्देश्य ही पराजित हो जायेगा। इसमें उत्पादन और विनिमय के साथ-साथ वितरण पर भी ध्यान दिया जाता है। लोकतन्त्रीय मतदान प्रणाली से समाज कल्याण क्रिया का निर्माण किया जाता है। सीमित साधनों और संसाधनों में सबकी सन्तुष्टि सुनिश्चित करने के लिए कतिपय अर्थशास्त्रियों ने आवश्यकताओं में कमी करने के विचार को भी अर्थशास्त्र में स्थान देने का आग्रह किया। प्रो. जे.के. मेहता के अनुसार अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानवीय आचरण का एक इच्छा-रहित अवस्था में पहुँचने के एक साधन के रूप में अध्ययन करता है। अर्थशास्त्रियों में कल्याणकारी अर्थशास्त्र के स्वरूप को लेकर विभिन्न मत हैं। ये मत विभिन्न परिस्थितियों और पूर्वाग्रहों की वजह से हैं। अनेकान्त उसका सटीक समाधान करता है। इसीलिए अर्थशास्त्र के नियमों और विश्लेषणउपकरणों को लागू करने में सापेक्षता का विचार किया जाता है। (342)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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