SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समावेश हो जाता है। अपरिग्रह व्रत को उन्होंने विशेष तौर पर 'ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त' (न्यास सिद्धान्त) के रूप में निरूपित किया। अपरिग्रह और ट्रस्टीशिप स्वामित्व के सम्बन्ध एक प्रकार की अधिकारिता अर्थात् अधिकार का दावा या हकदारी के सम्बन्ध होते हैं। निजी स्वामित्व वाली बाजार व्यवस्था में अन्य बातों के अलावा चार अधिकारिताएँ सहज स्वीकार्य होती हैं - व्यापार आधारित, उत्पादन आधारित, श्रम आधारित और उत्तराधिकार या हस्तान्तरण आधारित अधिकारिताएँ (Entitlement) / इनके अलावा विनिमय अधिकारिता की एक अलग सत्ता है। बाजार में वस्तु उपलब्ध होते हुए भी क्रय-शक्ति कुछ व्यक्तियों के पास केन्द्रित रहती है। जिनके पास विनिमय अधिकारिता अथवा क्रय शक्ति होती है, वे संसाधनों का भरपूर उपयोग तो करते ही है, अपव्यय और दुरुपयोग भी करते हैं। इसके विपरीत जिनके पास क्रय-शक्ति का अभाव होता है, वे पर्याप्त संसाधनों के होते हुए आवश्यक और मूलभूत वस्तुओं से भी मोहताज हो जाते हैं। इस तरह समाज में सापेक्ष रूप से अभाव और समस्याएँ बनी रहती हैं। अपरिग्रह उनका समाधान करता है। अपरिग्रह का सम्बन्ध संग्रह पर नियन्त्रण से है। उस नियन्त्रण के अनेक उपाय है। जिसमें स्वत्व और स्वामित्व के सीमांकन और विसर्जन की बात है। ट्रस्टीशिप के अनुसार परम्परा और परिस्थिति से प्राप्त धन, साधन में भी आसक्ति नहीं रखनी चाहिये / प्राप्त सम्पत्ति और साधनों पर स्वामित्व की भावना से मुक्त हो कर व्यक्ति अपने आप को न्यासी माने। अपने आपको धन-सम्पत्ति का न्यासी मानने वाला मूर्छा और आसक्ति से आसानी से मुक्त हो जायेगा और जरूरत के मुताबिक विसर्जन और सम-वितरण करता रहेगा। ट्रस्टीशिप के दो पहलू हैं।4 - संक्रमण काल का पहलू। जिसमें संग्रह के विसर्जन की दृढ़ भावना और निष्ठा है। दूसरा पहलू है - केवल धनिक ही न्यासी नहीं है, श्रमिक और अल्प-संग्रह वाला भी न्यासी है। गांधीजी मार्मिक बात कहते हैं - मेहनत से कमाई रोटी पर भी व्यक्ति का नहीं, भूख का अधिकार है। स्पष्ट है कि गांधीजी का ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त अपरिग्रह, असंग्रह, अचौर्य, अनासक्ति और संविभाग का ही रूप है। (340)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy