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________________ अर्थव्यवस्थाएँ राजाओं के अधीन रही तथा व्यष्टिगत अर्थव्यवस्था धार्मिक जीवनशैली और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों से संचालित रही। ईस्वी सन् 401-410 में चीनी यात्री फाह्यान ने 'विनयपिटक' की प्रामाणित प्रति प्राप्त करने के उद्देश्य से उत्तर भारत की तीर्थयात्रा की। उसने अपने यात्रा विवरण में लिखा कि सम्पूर्ण देश में कोई किसी प्राणी की हत्या नहीं करता। कोई शराब नहीं पीता और न कोई प्याज-लहसून खाता है। इससे प्रकट होता है कि लोगों की जीवन-शैली पर जैनाचार का प्रभाव था। उनका जीवन अहिंसा, संयम और शाकाहार से अनुप्राणित था। फाह्यान के विवरण से यह भी स्पष्ट होता है कि भारत के लिए वह समृद्धि का युग था। भारत का विदेशी व्यापार भी बहुत बढ़ा-चढ़ा था और लेन-देन में स्वर्णसिक्कों का प्रयोग होता था। वसुदेवहिण्डी में आर्थिक व्यवस्था ___ साहित्य अपने समय और समाज का दर्पण होता है। वसुदेवहिण्डी (चौथी-पाँचवीं सदी) भी तत्कालीन समय का बोध कराती है। इस कालजयी ग्रन्थ के प्रथम खण्ड की रचना आचार्य संघदासगणि ने और मध्यमखण्ड नामक दूसरे खण्ड की रचना धर्मसेनगणि ने की। राजा और राजनीति : भगवान महावीर के समय जिस गणतन्त्र की व्यवस्था की सूचना मिलती है, वह अर्द्ध-जनतन्त्रात्मक व्यवस्था जैसी मालूम पड़ती है। वसुदेवहिण्डी में राजतन्त्रीय व्यवस्था की सूचना मिलती है। जिसमें उत्तराधिकार आनुवांशिक होता था। राजा अपने राजधर्म का निष्ठापूर्वक पालन करें, इसके लिए उसमें पृथ्वी पालन में समर्थ, प्रजा हितैषी, प्रजा पालक, विनीत, विलक्षण, धीर, त्यागी, मिलनसार, सत्य-प्रतिज्ञ, इन्द्रिय-विजयी, उग्र दण्डनीति से युक्त, न्यायी का संरक्षण व दुष्टों का निग्रह करने वाला होना चाहिये। दूसरे खण्ड में राजा को पशु-पक्षियों से शिक्षा लेने की विलक्षण प्रेरणाएँ हैं। पशुओं के पालन-पोषण पर राज्य की ओर से भी व्यवस्थाएँ की जाती थीं। गौशालाएँ और अभयारण्य बनाये जाते थे। उनकी देखरेख के लिए राज्य कर्मचारियों की नियुक्ति होती थी। राजा अपने राज्य में अमारि की घोषणा करवाते थे। नियमों का उल्लंघन करने वाला दण्ड का भागी होता था। प्रजा राजकीय कार्यों में सहयोग करती थी। राजा व प्रजा में परस्पर सहयोग की भावना रहती थी। आर्थिक जीवन : वसुदेवहिण्डी में वर्णित आर्थिक जीवन के निम्न बिन्दु द्रष्टव्य हैं - (320)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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