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________________ गफलंत में अपना समय नहीं गँवाना चाहिये आचारांग सूत्र उद्घोषणा करता है - उठो, जागो, प्रमाद मत करो आगम की इन प्रेरक उद्घोषणाओं को समझने वाला सहज ही अस्तेय और अपरिग्रह की आराधना करता है। अस्तेय और प्रामाणिकता किसी भी रूप में चौर्य-कर्म अनार्य-कर्म है। वह अपकीर्ति को बढ़ाता है। चोरी करने से गुण छिप जाते हैं, विद्या निकम्मी हो जाती है और व्यक्ति का विश्वास व यश क्षीण हो जाता है। अचौर्य व्रत की तीन प्रेरणाएँ हैं - आर्थिक पारदर्शिता, सच्चरित्रता और जीवन के हर व्यवहार में प्रामाणिकता। अचौर्य व्रत का बाहरी जीवन व्यवहार से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वह व्यक्ति को परिश्रमी, प्रामाणिक और ईमानदार बनाता है। देश की अर्थव्यवस्था के कुशल संचालन और विकास के लिए अस्तेय व्रत अत्यन्त उपयोगी है। वह भ्रष्टाचार को मिटाने का कारगर माध्यम है। काले धन' की समस्या का निराकरण अस्तेय करता है। बड़े-बड़े आर्थिक घोटाले, कर-चोरी, रिश्वतखोरी, तस्करी आदि स्तेय के ही रूप हैं। इसलिए जो व्यक्ति सावधानी पूर्वक अस्तेय व्रत की आराधना करता है, अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह का पालन भी उसके लिए आसान हो जाता है। प्रमाणिकता के सुपरिणाम .. प्रमाणिकता का अर्थ है अपने प्रति ईमानदार और दूसरों के प्रति भी ईमानदार। प्रामाणिक होने के लिए अपनी मर्यादा करना आवश्यक है। सत्य पालन का अर्थ यह नहीं कि गोपनीयता को उजागर किया जाय। इसका आशय है कि व्यक्ति अपने व्यापार में लाभ-प्रतिशत की मर्यादा करें। मिलावटखोरी नहीं करें। व्यापारिक सीमा के बाहर की वस्तुओं का अनावश्यक संग्रह नहीं करें। इन बातों का ध्यान रखकर व्यापार करने वाले देश के व्यापार को प्रामाणिक बनाते हैं और आवश्यकता व सामर्थ्य के अनुरूप समृद्ध भी। अस्तेय व्रत का पालन करने से दुकान/दफ्तर और मन्दिर में अन्तर नहीं रहता है। व्यापार और धर्म एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं। प्रमाणिक व्यक्ति अपने व्यापार को चिर-स्थायी बनाता है। उसके व्यापारिक उत्पादों की हर जगह मांग होती है। उसका व्यापार धर्म-साधना और देश-सेवा का ही एक रूप होता है। परिग्रह के भेद-प्रभेद ___ आगम साहित्य में संग्रह को प्राणी मात्र की संज्ञा बताई गई है। इस वृत्ति को एकाएक तोड़ना कठिन होता है। भगवान महावीर सद्गृहस्थ के लिए नित्य (310)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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