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________________ निरांभिमानी है, वह ज्ञान, यश व सम्पत्ति प्राप्त करता है और अपना प्रत्येक कार्य सिद्ध करता है। __भगवती सूत्र में मान के बारह नाम बताये गये हैं।4 - 1. मान। 2. मद। 3.दर्प। 4. स्तम्भ। 5. गर्व। 6. अत्युक्रोश (आत्म-प्रशंसा)। 7. परपरिवाद। 8. उत्कर्ष : अपने वैभव का प्रदर्शन। 9. अपकर्ष : किसी को उसकी योग्यता से कम आंकना। 10. उन्नत नाम : सद्गुणों व गुणियों का अनादर करना, पैसे वालों का आदर करना। 11. उन्मत्त : दूसरों को निम्न समझना। 12. पुर्नाम : आधा-अधूरा झुकना। आगम-ग्रन्थों में व्यक्ति के धनाहंकार पर चोट करने वाले अनेक प्रेरक कथानक हैं। धन, सत्ता, पद आदि का अहंकार करने वाला सामान्य व्यक्तियों की योग्यता, सलाह व स्नेह से वंचित रहता है। 3. माया : विश्वसनीयता और मैत्री व्यवसाय की प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक है। माया यानि कपट इन मूल्यों को नष्ट कर देता है। भगवती आराधना में कहा गया है कि - एक कपट हजारों सत्यों को नष्ट कर डालता है। मिथ्या और कपटपूर्ण विज्ञापनों से मानव ने अपना उपयोग-विवेक खो दिया और समाज में वस्तुओं के उपभोग की एक अनावश्यक होड़ा-होड़ी पैदा कर दी है। वह हर चीज का उपभोग करता है या करना चाहता है; उपयोग नहीं! माया-मृषावाद से समाज में लोभ के दोष बढ़ रहे हैं। भगवती सूत्र के अनुसार माया के पन्द्रह नाम हैं" - 1. माया। 2. उपधि : ठगने के लिए किसी के पास जाना। 3. निकृति : ठगने के लिए किसी को विशेष सम्मान देना। 4. वलय : भाषिक छल। 5. गहन : छलने के लिए गूढ आचरण करना। 6. नूम : साजिश। 7. कल्क : दूसरों को हिंसा के लिए दुष्प्रेरित करना। 8. करूप : अभद्र व्यवहार करना। 9. निह्नता : ठगने के लिए कार्य मन्थर गति से करना। 10. किल्विधिक : कुचेष्य। 11. आदरणता : अवांछनीय कार्य। 12. गृहनता : अपनी करतूतें छिपाना। 13. वंचकता। 14. प्रति-कुंचनता : किसी के सहज-सरल वचन-व्यवहार का कपट से गलत अर्थ लगाना। 15. सातियोग : अच्छी वस्तु में खराब वस्तु मिलाना। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कपट-जाल में फँसा कर दूसरे से लाभ प्राप्त करना चाहता है, उसे ठगना चाहता है। बाजार के इन मायाचारियों की कुचालों को (266)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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