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________________ यह तंप हो जायेगा। इससे हमारी प्रतिरोधक शक्ति बढ़ेगी और बिजली का अनुत्पादक खर्च रुक जायेगा। यह तप व्यक्ति को कष्ट सहिष्णु बनाता है। भगवान महावीर का जीवन कष्ट-सहिष्णुता का उत्कृष्ट प्रतिमान है। 6. प्रतिसंलीनता : इन्द्रिय-वृत्तियों और मन की चंचलता को रोकना प्रतिसंलीनता है। जैसे बाहरी संकटों को जानकर कछुआ अपनी इन्द्रियाँ कवच के अन्दर कर लेता है, वैसे ही साधक को अपनी वृत्तियों को समेटने का अभ्यास करना चाहिये। मूलाराधना में इस तप को 'विविक्त शयनासन' कहा है। जिसका अर्थ होता है - शब्द, रस, गंध और स्पर्श से चित्त का विक्षेप नहीं होना। 'विविक्त शयनासन' के बिना एक सैनिक अपना जीविकोपार्जन और कत्तळपालन कैसे करेगा ? राजकीय कर्मचारी दफ्तर में बैठा है। उसकी मेज पर फोन है। मन हुआ किसी से अनावश्यक बातें करने का। सरकारी फोन और अपने समय का दुरुपयोग जानकर वह वैसा नहीं करता है तो वह उसका प्रतिसंलीनता तप है। 7. प्रायश्चित : प्रायश्चित के लिए प्राकृत भाषा में पायच्छित्त' शब्द है। 'पाय'. का अर्थ है पाप और 'च्छित्त' यानि छेदन करना। जिससे पापों का छेदन हो, वह प्रायश्चित है P0 ग्रन्थों के अनुशीलन से इसके दो अर्थ निष्पन्न होते हैं - पश्चाताप और दण्ड। गलती मानव स्वभाव है। पश्चाताप करने वाला निष्पाप हो जाता है। दण्ड दूसरों के द्वारा दिया जाता है। व्यवसाय जगत् में अर्थ-दण्ड की चर्चा की जा चुकी है। पश्चाताप से आत्मानुशासन पैदा होता है जबकि .. कुशल प्रशासन के लिए दण्ड की जरूरत भी पड़ती है। 8. विनय : यह कितना अद्भुत है कि भगवान महावीर विनय को भी तप की संज्ञा देते हैं। संसार में जो श्रेष्ठ, शिष्ट और प्रशस्त हैं, उन सबके प्रति विनय और आदर का भाव रखना, उनके और उत्कर्ष में अपना योगदान करना विनय-तप है। इससे सांस्कृतिक वैभव और राष्ट्रीय गौरव में वृद्धि होती है। आज्ञाकारिता, अनुशासन और सद्व्यवहार को भी विनय के अन्तर्गत लिया जाता है। इन गुणों से घर, प्रतिष्ठान और प्रशासन की व्यवस्थाएँ सुचारु हो जाती हैं। 9. वैयावृत्य : जो सेवा के योग्य है तथा जिन्हें सेवा की आवश्यकता है उनकी - सेवा करना वैयावृत्य तप है। सेवा भावना समाज को रुग्ण होने से बचाती है (249)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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