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________________ स्वतन्त्र भी। गृहस्थ अपने जीवन को इतना सन्तुलित और विवेकसम्पन्न बनायें जिससे त्रिवर्ग की साधना निर्विघ्न रूप से हो सके। 19. अथिति सेवा : भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार का अत्यधिक महत्व है। आगम साहित्य में आतिथ्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि गृहस्थ के घर पर अतिथि के आने पर वह हर्षित, प्रफुल्लित हो जाता। वह उसकी अगवानी में सात-आठ कदम सामने जाता, मधुर वाणी से उनका सत्कार करता। तत्पश्चात् वह जलपान आदि से उसका सत्कार करता। अतिथि के लौटने पर पुनः उन्हें पहुँचाने जाता। व्यवसाय जगत में भी आतिथ्य का महत्व है। इससे व्यवसाय पर अनुकूल असर पड़ता है, वह फलता-फूलता और बढ़ता है। 20. आग्रहशील न होना : भगवान महावीर के धर्म में दुराग्रह और कदाग्रह को कोई स्थान नहीं है। उनके धर्म, दर्शन, जीवन और व्यवहार में सर्वत्र अनेकान्त और अनाग्रह है। वहाँ सत्याग्रह और सत्यग्राहिता है। हठाग्रही व्यक्ति संकीर्ण होता है। वह अपने विकास के रास्ते स्वयं बन्द कर देता है। 21. गुणानुरागिता : प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई विशेषता होती है। गुणानुरागिता एक ऐसा सगुण है, जिससे संसार भर के सद्गुणों को अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। जैनागम साहित्य में गुणानुरागिता के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं। दूसरों में अवगुण ढूँढ़ने वाला स्वयं अवगुणी बन जाता है। छिद्रान्वेषी . सद्गुणी नहीं बन सकता। . 22. देशकालोचित आचरण : देश काल के अनुसार बहुत सारी बातें बदल जाती हैं। विवेकशील व्यक्ति को अपने काम-काज देश काल को देखते हुए करने _ चाहिये। जिससे उसे उपहास का पात्र नहीं बनना पड़े और लाभ की प्राप्ति हो। * ' अयोग्यं देश और अयोग्य काल में गमन नहीं करना चाहिये। 23. शक्ति के अनुसार कार्य : सद्गृहस्थ को अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार ही किसी कार्य को हाथ में लेना चाहिये। एक युवा को अपने व्यवसाय के चुनाव में अपनी योग्यता, रुचि और सामर्थ्य का ध्यान रखना चाहिये। आगम ग्रन्थों में बताया गया है कि आचार्य और उपाध्याय शिष्यों को उनकी योग्यता और पात्रता के अनुसार ज्ञान प्रदान करें और दायित्व सौंपें। (235)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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