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________________ 1. न्यायनीतिपूर्वक धनोपार्जन : आगमों में श्रावक को धम्माजीवी बताया गया है। जिस देश के नागरिक न्यायनीतिपूर्वक धनोपार्जन करने वाले हों वहाँ .. अनेक आर्थिक सामाजिक समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाता है। 2. शिष्टाचार प्रशंसक : जो शिष्ट होता है, वह विशिष्ट होता है। आगम ग्रन्थों में विनय, अनुशासन आदि सद्गुणों का अनेक स्थलों पर वर्णन है। शिष्टता मनुष्य को आर्थिक दृष्टि से योग्य बनाती है। एक अच्छा व्यावसायी और प्रबन्धक हमेशा शिष्ट होता है। वह शिष्ट जनों की तारीफ करता है। उनसे सहयोग लेना जानता है। 3. काम-संयम : आगम ग्रन्थों में अनेक जगहों पर उल्लेख हैं कि धनार्जन करने के लिए व्यापारी परदेश और विदेश जाते थे24 तथा दीर्घ अवधि के पश्चात् पुनः लौटते थे। बिना काम-संयम यह सम्भव नहीं था। सामान्य तौर पर भी एक सच्चरित्र और समर्थ व्यक्ति के लिए काम-संयम का अत्यधिक मूल्य है। इसके अतिरिक्त काम संयम के अन्तर्गत अयोग्य-विवाह का निषेध भी है। आगमों में कहा गया है कि बालभाव से उन्मुक्त होने पर, नौ अंग प्रतिबुद्ध : होने पर और गृहस्थ सम्बन्धी भोग भोगने में समर्थ होने पर ही विवाह किया जाय। जिन कार्यालयों में महिला-पुरुष कर्मचारी साथ-साथ कार्य करते हैं, वहाँ शालीन आचरण भी काम-संयम है। 4. पाप का भय : एक सद्गृहस्थ पाप और बुराइयों के अलावा कभी किसी से नहीं डरता है। वह पापी से भी नहीं डरता है, अपितु अवसर मिलने पर उसे भी रूपान्तरित कर देता है। 5. देशप्रसिद्ध आचार का पालक : जिस देश काल में व्यक्ति जीता है, उसकी मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए उसके अनुसार अपना व्यवहार रखें। समाज और देश की सभ्यता, संस्कृति, परम्परा और कानून-कायदों को जानने वाला तथा उसके अनुसार आचरण करने वाला उन्नति करता है। 6. अनिन्दनीय : भगवान महावीर ने निन्दा को पीठ का मांस खाने सदृश कहा है। जो पराये की निन्दा नहीं करता है, वह स्वयं भी अनिन्दनीय हो जाता है। आचार्यों ने निन्दा-निषेध में राजन्य वर्ग और प्रतिष्ठित पुरुषों की निन्दा नहीं करने की विशेष हिदायत दी है। व्यवसाय की वृद्धि के लिए यह बात बिल्कुल ठीक है। (232)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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