SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चेतना नागरिकों में होनी चाहिये, उस चेतना का विकास आगमों में वर्णित गृहस्थाचार से सहज रूप से होता है। एक अहिंसा व्रत धारी गृहस्थ भी अवसर आने पर देश की रक्षार्थ शस्त्र उठाने से नहीं हिचकता है। अहिंसा अणुव्रत के अन्तर्गत बताया जा चुका है कि श्रावक के लिए विरोधिनी हिंसा का त्याग शक्य नहीं है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में राजस्थान से पहली शहादत देने वाला वीर भगवान महावीर का उपासक अमर चन्द बाँठिया था। बाँठियाजी ने राष्ट्र-धर्म की आराधना के लिए तान्त्याटोपे को मुक्त आर्थिक मदद की। इस पर तत्कालीन अंग्रेजी शासकों ने बाँठियाजी को प्राणदण्ड की सजा सुनाई। बीकानेर निवासी अमर शहीद बाँठिया ने अन्तिम इच्छा के रूप में सामायिकव्रत की आराधना की और पूरे समभावों के साथ अपने प्राणों की बाजी लगा दी परन्तु राष्ट्र-धर्म से विचलित होना उचित नहीं समझा। राष्ट्र-धर्म के लिए बाँठियाजी ने न सिर्फ धन, अपितु अपने जीवन का दान भी कर दिया। दानवीर श्रावक भामाशाह ने अकबर के वैभवशाली जीवन के अनेक प्रलोभनों को ठुकराकर अपने देश के प्रति उत्कृष्ट वफादारी व स्वामीभक्ति का परिचय दिया। आगम-युग से लगाकर वर्तमान समय तक अनेक राजा, मन्त्री, दीवान आदि राज्याधिकारी हो गये हैं। जिनकी सलाहों और सेवाओं से राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में अगणित अध्याय जुड़े। इतिहास पर दृष्टिपात करें तो अधिकांश आर्थिक सलाहकार भ. महावीर के अनुयायी गृहस्थ ही रहे, जिन्होंने राज्य को सुदृढ़ आर्थिक आधार प्रदान किये। 4. पाखण्ड-धर्म (नीति-धर्म) : यहाँ पाखण्ड का अर्थ ढोंग या कर्म-काण्ड से नहीं अपितु अनुशासित व संयमित जीवन जीने से है। जिससे समाज व देश में शान्ति व व्यवस्था बनी रहे। गृहस्थाचार के सारे नियम-उपनियम व्यक्ति को उत्तम नागरिक बनाते हैं। सम्राट अशोक ने चरित्र-विकास के लिए एक स्वतन्त्र मन्त्रालय भी स्थापित किया था। . 5. कुल-धर्म : कौटुम्बिक श्रेष्ठ परम्पराओं का अनुपालन कुल-धर्म के अन्तर्गत परिगणित है। कुल-धर्म का एक अर्थ यह है कि सभी कुटुम्बीजन प्यार और सहकार पूर्वक रहें। कुल के जो ज्येष्ठ व श्रेष्ठ जन हैं, उनकी आज्ञाओं का सम्मान करें तथा जो वृद्ध व बीमारजन हैं, उनकी निष्ठापूर्वक साळ-सम्भाल करें। बड़े छोटों का ध्यान रखें और छोटे बड़ों का। जिस देश में कर्त्तव्यपरायण कुल व कुटुम्ब होते हैं, वह देश प्रगति करता है। (221)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy