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________________ जंगल और जमीन के लिए आन्दोलन हो रहे हैं। कर्मादानों के निषेध में समष्टि का . हित जुड़ा है। बौद्ध परम्परा में भी सभी प्रकार के हिंसक व्यवसायों को निषिद्ध . माना गया है। अंगुत्तर निकाय में भगवान बुद्ध ने पाँच प्रकार के काम-धन्धों का निषेध किया है - 1. सत्थवणिज्जा - शस्त्रों का व्यापार। 2. सत्तवणिज्जा - प्राणियों का व्यापार। 3. मंसवणिज्जा - मांस का व्यापार। 4. मज्जवणिजा - मद्य का व्यापार। 5. विसवणिज्जा - विष का व्यापार स्पष्ट है कि श्रमण परम्परा की दोनों धाराएँ हिंसा से हर मोर्चे पर लड़ रही थी। सिर्फ व्यवसाय में हिंसा की खिलाफत से पूरे समाज और जन-जीवन में हिंसा के विरुद्ध प्रभावशाली माहौल बनाया जा सकता है। श्रेष्ठ पर्यावरण, सामाजिक समता और आर्थिक समृद्धि के लिए यह प्रयोग ढाई हजार वर्ष पूर्व सफल रहा था। आज इसे पुनः दोहराने की आवश्यकता है। 8. अनर्थदण्ड विरमण व्रत यह धर्मशास्त्र का आठवाँ व्रत है; इसे अर्थशास्त्र का प्रथम व्रत कह सकते हैं। जीवन व्यवहार और व्यापार में जितनी भी उद्देश्यहीन, अपव्ययकारी और अनुत्पादक गतिविधियाँ और प्रवृत्तियाँ हैं, वे सब अनर्थदण्ड के अन्तर्गत आती हैं। सावधानीपूर्वक ऐसी वृत्तियों से विरत होना अनर्थदण्ड विरमण व्रत है। आधुनिक भौतिकवादी जीवन शैली में अपव्यय अत्यधिक बढ़ गया है। उसे न जनता रोक पा रही है, न सरकार / पच्चीस-छब्बीस शताब्दियों पूर्व तीर्थंकर महावीर जन-जीवन में ऐसी चेतना जागृत कर रहे थे कि समय, श्रम, साधनों और संसाधनों का अपव्यय बिल्कुल नहीं हो। केवल संसाधनों का ही नहीं, व्यक्ति अपनी भावशक्ति और वैचारिक-सम्पदा का भी अनावश्यक उपयोग नहीं करें। ऐसी निरर्थक पापकारी प्रवृत्तियों की पाँच कोटियाँ” बताई गई हैं1. अपध्यान : निष्प्रयोजन ही कुछ-का-कुछ सोचते रहना, अशुभ चिन्तन करना अपध्यान है। ग्रन्थों में वर्णित आर्त-ध्यान और रौद्र-ध्यान को अपध्यान कहा है। जिसमें चिन्ता, क्रूरता, हिंसा और प्रतिशोध के विचार आते हैं। ऐसे (196)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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