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________________ निर्यात से संसार भय और हिंसा से आक्रान्त है। ऐसे विकट समय में दिशापरिमाण व्रत दिशा-सूचक यन्त्र की तरह सबका दिशा-बोध कर रहा है। 7. उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत सातवाँ व्रत गरीब की सम्पन्नता का और सम्पन्न की सन्तुष्टि का अर्थशास्त्र है। भगवान महावीर ने व्यक्ति को संयमपूर्वक जीने की राह दिखाई। उस राह का बहुत सारा पाथेय इस व्रत में उन्होंने प्रदान किया है। इस व्रत के अन्तर्गत उपभोग और परिभोग का सीमाकरण किया जाता है। उपभोग के अन्तर्गत उन वस्तुओं को लिया जाता है जिनका उपयोग एक बार ही किया जा सकता है। जैसे जल, भोजन, खाने-पीने की चीजें, शृंगार प्रसाधन सामग्री, एकल उपयोग वस्तुएँ आदि। परिभोग के अन्तर्गत एक से अधिक बार उपयोग की जा सकने वाली वस्तुएँ आती हैं। जैसे वस्त्र, वाहन और अन्य सारी वस्तुएँ। आवश्यक सूत्र के अनुसार उपभोग-परिभोग की निम्न छब्बीस वस्तुओं का इस व्रत के अन्तर्गत परिमाण करना होता है1. उद्र्वणिका विधि : स्नान के पश्चात् शरीर पौंछने के काम आने वाले तौलिये की मर्यादा करना। 2. दन्तधावन विधि : दाँतों को साफ करने के द्रव्यों की मर्यादा करना / वर्तमान में सच्चे-झूठे टुथ-मेस्टों और टुथ-ब्रशों का अनाप-शनाप विज्ञापन और लम्बा चौड़ा व्यापार फल-फूल रहा है। इसके बावजूद दन्त रोगों में बेतहाशा वृद्धि : हो रही है। यह विचारणीय है। 3. फल विधि : खाद्य फल, औषधीय फल और प्रसाधन के रूप में काम में लिये जाने वाले फलों की मर्यादा करना। 4. अभ्यंगन विधि : मालिश के लिए काम आने वाले तेलों की मात्रा और संख्या की मर्यादा करना। 5. . उद्धर्तन विधि : उबटन, पीठी आदि की की मर्यादा निश्चित करना। 6. स्नान विधि : स्नान के लिए जल की मात्रा की मर्यादा करना। कुए-बावड़ी, * झील-सरोवर, नदी-निर्झर, स्वीमिंग-पुल आदि में स्नान नहीं करना अथवा मर्यादा करना। स्नानादि से जल-स्रोतों को प्रदूषित नहीं करना। जल-संकट के दौर में इस नियम का बहुत महत्व है। जल के सीमित उपयोग का 'अभ्यास सबको करना चाहिये। (189)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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