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________________ श्रावक देव-देवी सम्बन्धी मैथुन का त्याग दो करण तीन योग से तथा मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी मैथुन का त्याग एक करण एक योग से करता है। संसारिक जीवन की जिम्मेदारियों और व्यावहारिक कठिनाइयों को ध्यान में रखकर इस व्रत का विधान किया गया है। इस व्रत के पाँच अतिचार इस प्रकार हैं - 1. इत्वरपरिगृहितागमन : इस अतिचार के तीन अर्थ बताये गये हैं - थोड़े समय के लिए रखी गई रखैल स्त्री से समागम, वाग्दत्ता के साथ समागम और अल्पवयस्क या अवयस्क के साथ समागम / वर्तमान सन्दर्भो में इस प्रकार के सम्बन्धों को शारीरिक, सामाजिक और कानूनी दृष्टियों से भी वर्जनीय व हेय माना जाता हैं। ऐसे सम्बन्ध व्यक्ति को दरिद्रता की ओर ढकेलते हैं। 2. अपरिगृहितागमन : इस अतिचार का अर्थ किसी भी प्रकार की पराई स्त्री या पर-पुरुष के साथ समागम करने की ओर बढ़ना है। जिसका व्रत के द्वारा निषेध है। व्रत का मूल हेतु भी यही है। सप्त कुव्यसनों में दो व्यसन वेश्यागमन और परस्त्री या परपुरुष-गमन इस अतिचार से सम्बन्धित हैं। अवैधानिक और असामाजिक सम्बन्धों से जीवन संकटों से घिर जाता है। 3. अनंगक्रीड़ा : स्वाभाविक रूप से कामसेवन की बजाय अप्राकृतिक तरीकों से कामक्रीड़ा करना अनंगक्रीड़ा अतिचार है। समलैंगिक कामक्रीडाएँ भी इसी अतिचार के अन्तर्गत आती है। सद्गृहस्थ इन पापों को पूर्णत: त्यागकर अपने जीवन को सजाता है। 4. परविवाहकरण : गृहस्थ को चाहिये कि वह अपने परिवार के सदस्यों के विवाह के अतिरिक्त अन्य जनों के विवाह करवाने से बचें। कितने ही व्यक्तियों को दूसरों के लड़के-लड़कियों के रिश्ते जुड़वाने में दिलचस्पी होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से वह ठीक नहीं है। निरपेक्ष भाव और सहयोग भाव से इस सम्बन्ध में किसी की मदद करने का सामाजिक मूल्य है। वर्तमान समय में जहाँ सम्बन्ध जुड़ना कठिनतर हो रहा है; विलम्बित विवाह और अविवाह की स्थितियाँ समाज में पैदा हो रही हैं, वहाँ इस सहयोग का मूल्य और बढ़ जाता है। सामूहिक विवाह की परम्परा का एक कारण यह भी है। व्यक्ति के सुख-समृद्धि का सपना इससे जुड़ा है। ब्रह्मचर्य व्रत का मुख्य लक्ष्य भोगासक्ति घटाना और समाज में सदाचार की स्थापना करना है। .. विवाह भी इन उच्चतर लक्ष्यों से जुड़ा है। (183)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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