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________________ बोना। इस निर्देश के साथ रोहिणी, बुवाई और बुवाई के बाद की सारी प्रक्रिया व प्रविधि अपने कुलगृह के सदस्यों को समझाती है। कुलगृह के सदस्य रोहिणी के निर्देशानुसार उन पाँच अक्षत दानों को अलग से बोते हैं। उनकी फसल अलग से लेते हैं। उनका विधिवत् भण्डारण करते हैं। पुनः उन बढ़े हुए दानों को बोते हैं। वर्ष / दर वर्ष यह क्रम चलता है। ___ पाँच वर्ष बाद धन्य सार्थवाह पुनः एक भोज और मिलन का कार्यक्रम रखता है। उसमें सभी परिवारजनों, मित्रों और परिचितों को आमंत्रित करता है। कार्यक्रम के दौरान चारों बहुओं को बुलाकर पाँच वर्ष पूर्व दिये पाँच शालि-अक्षत के दानों के बारे में पूछता है। पहली बहू उज्झिता से दाने लेते हुए पूछा कि ये दाने वही हैं या दूसरे? उज्झिता कहती है - दूसरे। इस पर सार्थवाह ने उस बहू को उसके स्वभाव के अनुसार घर के झाडू-कचरा और बाहर के कार्यों की जिम्मेदारी सौंप दी। दूसरी बहू भोगवती, जो अक्षत के दाने खा गई थी, को रसोई सम्बन्धी जिम्मेदारी सौंपी। तीसरी बहू रक्षिता ने पाँच दाने डिब्बी में संभाल कर रखे थे। श्वसुरजी को वे ही दाने लौटाये। श्वसुरजी संतुष्ट हुए और उन्होंने रक्षिता को धनसम्पदा, रत्न-मणि और बहुमूल्य खजाने की भाण्डागारिणी के रूप में नियुक्त कर दिया। चौथी बहू रोहिणी को पूछने पर बताया गया कि वे पाँच शालि-अक्षत के दाने पाँच वर्षों में बहुत बढ़ गये हैं। इसलिए गाड़ियाँ भरकर उन्हें लौटाना होगा। इस पर सार्थवाह ने रोहिणी को बहुत छकड़ा-छकड़ी दिये। रोहिणी ने गाड़ियाँ भर-भर कर वे दाने लौटाये तो सब देखते रह गये। धन्य सार्थवाह ने रोहिणी को कुटुम्ब का सर्वेसर्वा नियुक्त कर दिया। इस कथा के माध्यम से हालांकि ग्रन्थकार धर्म-शिक्षा देता है, परन्तु इसके कई आर्थिक पक्ष उभरते हैं। 1. धन्य, सार्थवाह था। सार्थवाह देश-विदेश में व्यापार करने वाला बहुत बड़े व्यापारिक दल का मुखिया होता है। वह विशिष्ट प्रबन्धकीय कौशल का धनी होता है तथा प्रस्तुत कथा में उसके इस कौशल को वह प्रकट करता है। 2. धन्य के चारों पुत्रों के नाम अर्थशास्त्रीय हैं। 3. गोपनीय बातों को छोड़कर कोई भी बड़ा फैसला सबके सामने अथवा सबकी सम्मति से किया जाता था। (166)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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