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________________ 26. 20. . प्रतिष्ठान महाराष्ट्र शूरपारक भृगुकच्छ गुजरात द्वारवती वीतिभयपट्टन पाकिस्तान तक्षशिला पुष्कलावती ___ इन सभी स्थलों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व भी खूब रहा है; परन्तु यहाँ उनके वर्णन में वाणिज्यिक महत्त्व को रेखांकित किया गया है। 1. राजगृह : यह प्रसिद्ध व्यापार केन्द्र था। यहाँ सम्पन्न व्यापारी लोग रहते थे। अनेक स्थानों से लोग यहाँ माल क्रय-विक्रय करने आते थे। तक्षशिला से यह सीधे तौर पर जुड़ा था। श्रेणिक (बिम्बिसार) और कूणिक (अजातशत्रु) राजगृह के शासक थे। निरयावलिका में राजगृह के लिए कहा गया - रिद्धिस्थिमिय समिद्धे अर्थात् वह धन-धान्य, वैभव, ऋद्धि, समृद्धि से युक्त था। 2. चम्पा : श्रेणिक के निधन के पश्चात् कणिक ने चम्पा को अपनी राजधानी बनाया था। औपपातिक और उववाई सूत्र में चम्पा का ऐसा वर्णन है जिससे यह समृद्ध व्यवसाय-केन्द्र के रूप में हमारे सामने आता है। यह मिथिला, अहिच्छत्रा, पिहुण्ड आदि से स्थल मार्ग से तथा गंगा नदी व अन्य नदियों के माध्यम से जल मार्ग से जुड़ा हुआ था। यहाँ के बाजार (विवाटी) शिल्पियों से आकीर्ण रहा करते थे। इस सुन्दर और धन-धान्य से परिपूर्ण नगर में अनेक व्यापारी, नौवणिक्, श्रेष्ठि, कारीगर और कलाकार रहते थे। धन्य सार्थवाह .. 'यहीं का निवासी था। अर्हन्नक, मालन्दी और जिनपालित चम्पा के निवासी थे, जिन्होंने साहसिक व्यापारिक समुद्र-यात्राएँ कीं।" . 3. पाटलिपुत्र (पटना) : इस नगर को अजातशत्रु (कूणिक) ने बसाया था। तथा उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र उदायी ने इसे अपनी राजधानी बनाया। बाद में चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, अशोक और कुणाल पाटलिपुत्र के राजा बने थे। ई. पू. 367 में जैन-आगमों की प्रथम वाचना यहीं हुई थी। यह उत्तरापथ का अच्छा व्यवसाय केन्द्र था। नदी के समीप होने से यह नदी जल मार्ग और (151)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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