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________________ मुंगफली का तेल भी रहा होगा। देश-विदेश में व्यापार को देखते हुए नारियल और नारियल का तेल भी प्रयोग किया जाता होगा। तेल की घाणी चलाने को यन्त्रवीड़न कर्म में गिना गया है, जिसे श्रावक के लिए त्याज्य कर्मादान बताया गया है। दवा-व्यवसाय ___ औषधियों का भी एक लम्बा-चौड़ा व्यापार था। तेल से निर्मित दवाइयाँ बाहरी रूप में प्रयुक्त हुआ करती थी। ग्रन्थों में शतपाक और सहस्रपाक तेल का उल्लेख मिलता है, जिन्हें सौ या हजार औषधियों में तथा सौ या हजार बार पकाया जाता था। अन्य अनेक प्रकार के औषधीय तेलों के उल्लेख से आयुर्वेद की विकसित अवस्था का पता चलता है। स्थानांग सूत्र के आठवें अध्ययन में आठ प्रकार के आयुर्वेद का उल्लेख है - कौमारभृत्य (शिशु/बाल रोग चिकित्सा), शालाक्य (श्रवण आदि शरीर के उर्ध्वभाग के रोगों का इलाज), शाल्यहत्य (प्राचीन शल्यों व शल्य-उपकरणों का विवेचन), कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), जांगुल (विषघातक औषध उपाय), भूतविद्या (भूतों के निग्रह की विद्या), रसायन (आयु, बल, बुद्धि आदि बढ़ाने का तन्त्र) और बाजीकरण (वीर्यवर्द्धक औषधियों का निरूपण)। ये विधाएँ प्राचीन भारत में स्वास्थ्य जागरूकता तथा दवा/चिकित्सा व्यवसाय की प्रमाण है। ज्ञाताधर्मकथांग व उपासकदशांग में 16 प्रकार के रोगों का उल्लेख हैं। रोग-निवारण के लिए अनेक रसायनों तथा जडी-बूंटियों से औषधियों का निर्माण किया जाता था। आयुर्विज्ञान विकसित अवस्था में था। खरक वैद्य ने भगवान महावीर के कानों से कीलें निकाली, उससे पूर्व शरीर का तेल से मर्दन किया। कीले निकालने पर रक्त प्रवाहित होने लग गया था। वैद्य ने संरोहण औषधि से रक्त प्रवाह को रोक दिया। प्रसाधन-व्यवसाय विभिन्न प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों का उत्पादन और व्यापार भी होता था। इस व्यवसाय को करने वाले 'गंधी' कहलाये जाते थे। राजन्य और श्रेष्ठी वर्ग इत्र, सुगंधित द्रव्यों और विलेपन का उपयोग करते थे, वहीं महिलाएँ भी अपने श्रृंगार में तरह-तरह के कॉस्मेटिक्स का उपयोग करती थीं। लाक्षा रस नामक प्रसाधन से महिलाओं के अंग राग बनाये जाते थे। आँखों के लिए सूरमा और चिरयुवती दिखाने के लिए एक विशेष प्रकार की गुटिका का भी उल्लेख मिलता है। गंधीयशाला में सौन्दर्य-प्रसाधनों की बिक्री होती थी। श्रावक को सातवें व्रत उपभोग-परिभोग के अन्तर्गत प्रसाधनों की मर्यादा का सुझाव दिया गया है। (134)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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