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________________ दुग्गल - दुकूल के रेशों से निर्मित। पट्ट - पट्ट के तन्तुओं से निर्मित। अंसुय - दुकूल वृक्ष की छाल के रेशों से बना। देसराग - विशेष रूप से रंगे हुए वस्त्र / गज्जफल - स्फटिक के समान स्वच्छ। कोयव - रोंयेदार कम्बल। कम्बलग - साधारण कम्बल। पावारण - लबादा से लपेटने वाले वस्त्र। इसी प्रकार ग्रन्थों में वस्त्रों की अनेक किस्मों और श्रेणियों का वर्णन है। वस्त्र से जुड़े अन्य शिल्पी - रंगरेज, दर्जी, धोबी आदि का भी उल्लेख है। रंगाई उद्योग विभिन्न रंगों और डिजायनों के वस्त्र लोग धारण करते थे। निशीथ-सूत्र में बताया गया है कि लोग ऋतु के अनुसार अलग-अलग रंगों के वस्त्र पहनते थे। इसका अर्थ यह है कि लोग मौसम के अनुसार रंगों के प्रभाव को समझते थे। वस्त्रों की बढ़िया किस्म बनाने के लिए और वस्त्रों को सुन्दर बनाने के लिए रंगाई उद्योग अपना काम करता था। तैयार वस्त्र उद्योग वस्त्र उद्योग के साथ ही गारमेण्ट उद्योग भी विकसित था। स्त्री-पुरूषों, बच्चों-युवाओं आदि के लिए तैयार वस्त्र मिलते थे। इन वस्त्रों की सिलाई करने वाले विशेष दर्जी भी होते थे। रफू करने वालों को 'तुन्नग' कहा जाता था। लोग विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के वस्त्र धारण करते थे। घर में पहनने योग्य वस्त्र ‘नियंसणं, स्नान करके पूजा करने से पूर्व 'मज्जणियं', उत्सव में जाने के लिए 'छणूसवियं पोशाक तथा राजकुल में जाने के लिए 'राजदारिय पोशाक धारण की जाती थी। इस शौक के पीछे समृद्धि, समृद्ध कला और वस्त्र-व्यापार की लम्बी श्रृंखला थी। निशीथचूर्णि में मूल्य के आधार पर तीन प्रकार के वस्त्रों का वर्णन है। 'जहण्ण वस्त्र सबसे सस्ता होता था, जिसकी कीमत 18 'रूवग होती थी जबकि 'उक्कोसा सबसे महंगा वस्त्र था जिसकी कीमत एक लाख रूवग बताई गई है। (128)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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