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________________ नलिका, धनुष, युग, अक्ष, मूसल आदि माध्यम थे, जिनसे खेत, भूखण्ड, घर, भित्ति, कुएँ, खाई, कपड़ा, चटाई जैसी वस्तुओं को मापा जाता था। 4. परिच्छ/प्रतिमान : जिन वस्तुओं में गुणवत्ता की परीक्षा के साथ व्यवहार किया . जाता हो, उन्हें परिच्छ कहा गया। इनके अन्तर्गत बहुमूल्य धातुएँ स्वर्ण, रजत और रत्न, मणि, मुक्ता आदि आते हैं। गुंजा-रत्ती, कांकणी, निष्पाव, कर्ममाषक, मण्डल, सुवर्ण आदि प्रतिमानों से इनका तौल होता था। ___. इनके अलावा अंगुल, वितस्ति, रनि, कुक्षि, धनुष और गव्यूत आदि का उपयोग दूरी मापने के लिए किया जाता था। परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका, यव आदि का उपयोग लम्बाई मापने के लिए किया जाता था। समय की गणना समय, आवलिका, श्वास, उच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, वर्षशत (शताब्दी) से लेकर शीर्षप्रहेलिका आदि से की जाती थी आगम युग के अनेक माप आज भी प्रचलित है। . वित्तीय प्रणालियाँ आगम युग में प्रभूत व्यापार, वाणिज्य, कृषि, उद्योग आदि विद्यमान थे। इस आधार पर माकूल वित्तीय व्यवस्थाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। परन्तु आधुनिक बैंकिंग प्रणाली जैसी व्यवस्थाएँ देखने को नहीं मिलती। देशी बैंकर्स और पारम्परिक वित्तीय प्रणालियों की तत्कालीन समय में महत्वपूर्ण भूमिका थी। श्रेष्ठी, सार्थवाह और वणिक वर्ग के सम्पन्न व्यक्ति बैंकिंग का व्यवसाय करते थे। बैंकिंग के लिए आधरभूत बातें हैं - ऋण के लिए कोष की उपलब्धता, ऋण देना और जमाएँ स्वीकार करना। कोष की उपलब्धता ___उपासकदशांग के अनुसार वाणियगाम के गाथापति आनन्द तथा अन्य नौ श्रावक अपनी सम्पत्ति को तीन हिस्सों में नियोजित करते थे। एक तिहाई हिस्सा निधि के लिए, एक तिहाई हिस्सा व्यवसाय के लिए और एक तिहाई हिस्सा गृहसामग्री में नियोजित किया जाता था। व्यवसाय के लिए नियोजित हिस्से को ब्याज पर भी दिया जाता था। निधि के लिए संग्रहित धन को भी ब्याज पर दिये जाने के लिए काम में लिया जाता था। इस प्रकार वित्त-व्यवसाय अथवा बैंकिंग-व्यवसाय का संचालन किया जाता था। श्रावक आनन्द ने चार करोड़ और चुलनीपिता और महाशतक ने आठ-आठ करोड़ हिरण्य (स्वर्ण-सिक्के) व्यवसाय में लगा रखे थे। (72)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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