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________________ 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 aca cacacaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0902090 90909 (8) काहली (खरमुखी)- काहला को खरमुही (खरमुखी) नाम से भी निर्दिष्ट किया जाता है। इसका उल्लेख निशीथ, राजप्रश्नीय, दशाश्रुतस्कन्ध, औपपातिक व जीवाजीवाभिगम आदि , आगमों में प्राप्त होता है। यह एक सुषिर वाद्य है। इसका निर्माण तांबा, चांदी या सोने से होता था। ce एक टीकाकार ने इसे काष्ठनिर्मित व खरमुखाकार बताया है। लौकिक भाषा में इसे भूपाड़ों के नाम " & से भी जानते हैं। संगीत ग्रन्थों के अनुसार, फूंक से बजाया जाने वाला यह वाद्य भीतर से खोखला होता था। इसकी मुखाकृति धतूरे के फूल जैसी होती थी, जिसके बीच में दो छेद होते थे। बजाने पर & हाथी जैसी हूं, हूं आदि ध्वनि निकलती थी। विवाहादि सभी मांगलिक कार्यों पर यह वाद्य बजाया / जाता रहा है। - (9) तलिमः (मंजीरा या छोटी झांझ)-कुछ लोग इसे झल्लरी का ही छोटा रूप मानते हैं। ca कुछ ने ताल व मंजीरा को एक भी माना है। इसे तल, ताली भी कहा जाता है। तल या ताल -इन .. & वाद्यों का उल्लेख राजप्रश्नीय, स्थानांग, दशाश्रुत स्कन्ध, औपपातिक, निशीथ आदि आगमों में , मिलता है। तल या ताल का ही लघु रूप तलिम' प्रतीत होता है। इसे उत्तरभारत में झांझ, ब्रज भाषा, ल में तार (ताल) और महाराष्ट्र में टाड़ कहा जाता है। संगीताचार्यों के अनुसार इसका विवरण इस & प्रकार है- ताल वाद्य का निर्माण कांसे या पीतल से होता है। यह दो हिस्सों में होता है, ये दोनों भाग 2 ca लगभग छः अंगुल व्यास के गोल कांसे के बने हुए बीच से दो अंगुल गहरे होते हैं। मध्य में छेद होता & है। इन छेदों में डोरी डाल कर भीतर से गांठ लगा दी जाती है। जिससे डोरी निकल न पाए। दोनों : भागों को एक दूसरे के आघात द्वारा बजाया जाता है। कृष्ण-भक्त गवियों ने इस वाद्य का बहुलता से , ca उल्लेख किया है। 'झांझ' भी कहा जाता है। (12) वंश (बांसुरी, बंसी)- इस वाद्य का उल्लेखनिशीथ, नन्दीसूत्र, राजप्रश्नीय, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति : ce आदि आगमों में मिलता है। यह भारत का अति प्राचीन सुषिर वाद्य है, जिसे प्रायः मेले आदि के 7 & अवसर पर बिकते हुए देखा जाता है। आधुनिक युग में बांसुरी की अनेक किस्में प्राप्त हैं। & प्राचीन काल में वंशी बनाने के लिए चिकना, सीधा तथा बिना गांठ के बांस का प्रयोग करते " थे। खैर की लकड़ी, हाथी दांत, लाल चंदन तथा सफेद चंदन की भी बांसुरी बनती थी। लोहा, कांसा, . चांदी, सोने आदि की भी बांसुरियां बनाई जाती थीं। बांसुरियां गोल आकार की सीधी तथा चिकनी, ce होती थीं। प्रायः कनिष्ठा अंगुली प्रवेश कर सके, इतनी पोली होती थी। वंशी की लम्बाई 10 अंगुल से " & लेकर 35 अंगुल तक होती है। ऊपरी भाग में दो, तीन अथवा चार अंगुल छोड़कर एक अंगुल के . प्रमाण से एक छेद किया जाता है, जिसे मुखरन्ध्र कहते हैं। बांसुरी की लम्बाई के अनुपात में 4 से 15 | तक छेद किये जाते हैं। मुखरन्ध्र के पास वादन के लिए एक चोंच सी बना दी जाती है। जब संगीतकार | - 30 (r)(r)(r)(r)con@CR89c8080cr@98.
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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