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________________ 333333333333333333338 333333333322238232 -cace cace ca caca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) Mmmmmm चेति द्रव्यं तत्त्वज्ञैः' सर्व स्तीर्थकृद्भिरिति यावत्।सचेतनम् अनुपयुक्तपुरुषाख्यम्, अचेतनं ce ज्ञशरीरादि तथाभूतमन्यद्वा 'कथितं' आख्यातं प्रतिपादितमित्यर्थः। तत्र द्रव्यं च तन्मङ्गलं : चेतिसमासः। (वृत्ति-हिन्दी-) जो भूत में या भावी काल में उस भाव का कारण हो, वह चेतन हो अचेतन, उसे तत्त्वज्ञानियों ने 'द्रव्य' कहा है। (आगम व नोआगम के संदर्भ में) इसका तात्पर्य यह है- भूत यानी अतीत, भावी / यानी अनागत, ऐसे भाव या पर्याय का कारण या निमित्त जो होता है, वह 'द्रव्य' (निक्षेप), होता है, क्योंकि द्रव्य वह है जो उन-उन पर्यायों (भावी पर्यायों) को प्राप्त करता है या (और) 0 R (पूर्वपर्यायों को) क्षय करता है- ऐसा तत्त्वज्ञानी, सर्वज्ञ तीर्थंकरों द्वारा कहा गया है। " & अनुपयुक्त (अर्थात् विवक्षित विषय में उपयोग-रहित) पुरुष को सचेतन द्रव्य, और ज्ञशरीर, या भव्य (भावी) शरीर आदि को अचेतन द्रव्य, इस प्रकार चेतन या उससे भिन्न अचेतन, दोनों को द्रव्य कहा गया है, प्रतिपादित किया गया है। द्रव्य जो मङ्गल -इस प्रकार (कर्मधारय) 1 c& समास होकर 'द्रव्यमङ्गल' शब्द बना है। 6 (हरिभद्रीय वृत्तिः) तच्च द्रव्यमङ्गलं द्विधा-आगमतो नोआगमतश्च। तत्र आगमतः खल्वागममधिकृत्य ca आगमापेक्षमित्यर्थः, नोआगमतस्तुतद्विपर्ययमाश्रित्य।तत्रागमतो मङ्गलशब्दाध्येता अनुपयुक्तो " & द्रव्यमङ्गलम्, 'अनुपयोगो द्रव्यम्' इति वचनात्।तथा नोआगमतस्त्रिविधं द्रव्यमङ्गलम्।तद्यथा& ज्ञशरीरद्रव्यमङ्गलम् 1, भव्यशरीरद्रव्यमङ्गलम् 2, ज्ञशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तम् 3, 4 द्रव्यमङ्गलमिति।तत्र ज्ञस्य शरीरं ज्ञशरीरम्, शीर्यत इति शरीरम् ज्ञशरीरमेव द्रव्यमङ्गलम् ज्ञशरीरद्रव्यमङ्गलम्, अथवा ज्ञशरीरं च तद्रव्यमङ्गलं चेतिसमासः। (वृत्ति-हिन्दी-) वह द्रव्यमङ्गल दो प्रकार का है- आगम-द्रव्यमङ्गल और नो-आगम & द्रव्यमङ्गल / इनमें 'आगम द्रव्यमङ्गधल' वह होता है जो आगम आधारित होता है, अर्थात् " जिसमें आगम (यानी शब्दार्थज्ञान या उसके कारणभूत आत्मा) की अपेक्षा रखी जाती है। " & नो-आगम इससे विपरीत होता है। इनमें 'आगम द्रव्य मङ्गल' वह है जो मङ्गल-शब्द का , अध्येता होते हुए (उसमें) उपयोग नहीं रखता, क्योंकि 'उपयोगरहित द्रव्य होता है' ऐसा / & कहा गया है। इसी प्रकार, 'नो आगम द्रव्य मङ्गल' तीन प्रकार का होता है, जैसे- (1) " / ज्ञशरीर द्रव्यमङ्गल, (2) भव्यशरीर द्रव्य मङ्गल, और (3) ज्ञशरीर भव्यशरीर (उभय) व्यतिरिक्त / - 20 0 3@@@@98R@088980cene 3 888888888888888888888888888888888888888888888
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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