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________________ RRcaca Race श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 9999999 333333333333333333333333333333333333333333333 / ग्वाले के लड़के में वह अर्थ (घटित) नहीं होता है। और पर्यायों से, जैसे शक्र, पुरन्दर आदि पर्यायों से उसका कथन नहीं किया जाता। यहां नाम और नाम वाला -इन दोनों में अभेद , का उपचार कर 'ग्वाला' रूप वस्तु का यहां ग्रहण किया गया है। तो इस प्रकार का 'नाम', होता है। और अन्यत्र वर्तमान न होने पर यदृच्छा से रख दिया जाता है जैसे 'डित्थ' आदि / नाम। 'च' पद से यह सूचित होता है कि नामकरण जब तक विवक्षित द्रव्य रहता है, तब तक, या प्रायः अर्थात् कुछ समय के लिए भी होता है (जैसे- पुराने नाम की जगह दूसरा, & नाम रखा जा सकता है)। किन्तु जो सूत्र (आगम) में कहा गया है कि 'नाम यावदर्थिक' >> (या यावत्कथिक) होता है (अर्थात् जब तक वह वस्तु है, तब तक रहता है), वह तो प्रतिनियत जनपदों के नामों को दृष्टि में रखकर कहा गया है। नाम हो और मङ्गल हो- इस , & प्रकार (कर्मधारय) समास है (और 'नाममङ्गल' यह पद निष्पन्न हुआ है)। जिस किसी जीव, या अजीव या दोनों का 'मङ्गल' यह नाम रख दिया जाता है तो वह 'नाममङ्गल' है। जीव का a नाम, जैसे सिन्धु प्रदेश में अग्नि को 'मङ्गल' नाम से पुकारा जाता है। अजीव का नाम, " * जैसे- श्रीसम्पन्न लाट देश में दवरकवलनक (रस्सी के बने तोरण) को 'मङ्गल' कहा जाता " है। जीव व अजीव -इन दोनों का) नाम, जैसे- 'वन्दनमाला' यह (पुष्प रूप जीव और रस्सी रूप अजीव -इन दोनों का नाम है। ca विशेषार्थ आगम-निरूपित विषयों को स्पष्ट व विस्तार से समझाने में नियुक्ति-पद्धति विशेष सक्षम " मानी गई है। नियुक्ति-पद्धति में अनुयोग या अनुगम विधि का विशेष अवलम्बन लिया जाता है। 6 नियुक्ति-पद्धति को विशेष रूप से समझाने के लिए भाष्यकार ने अनुगम के तीन भेदों का निर्देश 1 & किया है। वे भेद हैं- (1) निक्षेपनियुक्ति अनुगम, (2) उपोद्घात-निर्युक्ति अनुगम, और (3) सूत्रस्पर्शिक . नियुक्ति-अनुगम। वस्तुतः उपोद्घात-नियुक्ति में ही निक्षेप-नियुक्ति समाविष्ट है। निक्षप को अनुयोग : & द्वार के भेद रूप में तथा उपोद्घात नियुक्ति के भेद रूप में- दोनों रूपों में निर्दिष्ट किया गया है। इन " & दोनों का अन्तर यह है कि निक्षेप रूप अनुयोग द्वार में नामादि निक्षेपों के अनुरूप 'अर्थ' का निर्देश : मात्र होता है, जब कि उपोद्घात-निर्युक्ति के अन्तर्गत उनका शब्दार्थविचार भी किया जाता है। यहां ca निक्षेप विधि से ‘मङ्गल' पदार्थ का विवेचन जो किया गया है, वह नियुक्ति पद्धति का अनुसरण है। " & निक्षेप -चार प्रकार के माने गये हैं- (1) नाम, (2) स्थापना, (3) द्रव्य, (4) भाव / प्रकृत में 'नाम " निक्षेप' के अनुरूप मङ्गल का निरूपण है। आगे अन्य तीन निक्षेपों के आधार पर मङ्गल का निरूपण " किया जा रहा है। (r)(r)(r)(r)(r)(r)RO90@cr@@@cR908 &&&&&&&&&&&&&&&&& - 18
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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