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________________ Raacaaaaa 0000000 222222223232222333333333330233232323232222222 नियुक्ति गाथा-1 (भूमिका) | नहीं होता है। यदि मोदक को तीन भागों में बांट भी दें तो, वहां कोई खाली भाग तो रहेगा | a नहीं, इसी प्रकार प्रकृत शास्त्र में भी समझना चाहिए (अर्थात् यह भागों में विभक्त किये " a जाने पर भी, उसमें कोई खाली भाग नहीं है, जहां अमङ्गल की स्थिति माननी पड़े)। . a (हरिभद्रीय वृत्तिः) मालत्वं चाशेषशास्त्रस्य निर्जराईत्वात्, प्रयोगश्च-विवक्षितं शास्त्रं मालम्, निर्जरार्थत्वात्, तपोवत् / कवं पुनरस्य निर्जरार्थतेति चेत्, बाबरूपत्वात्, नानस्य च कर्मनिर्जरणहेतुत्वात्।उक्तं च जंबेरइओ कम्म, खवेइ बहुयाहि वासकोडीहिं। तं नाणी तिहि गुत्तो, खवेइ ऊसासमित्तेणं। स्यादेतत्, एवमपि मालत्रयपरिकल्पबावैयर्थ्यमिति ब, विहितोत्तरत्वात्। a तस्मास्थितमेतत्-शास्त्रस्य आदौ मध्येऽवसाने च मालमुपादेयमिति। (वृत्ति-हिन्दी-) समस्त शास्त्र की मङ्गलमयता इसलिए है, क्योंकि इसका प्रयोजन व निर्जरा करना है। अनुमान वाक्य से भी इसका समर्थन होता है-विवक्षित शास्त्र मङ्गलमय व है, 'निर्जरा' रूपी प्रयोजन का साधक होने से, तप की तरह। (प्रश्न-) यह शास्त्र (कर्म-) 0 निर्जरा का साधक कैसे है? उत्तर है- ज्ञान रूप होने से, क्योंकि ज्ञान कर्मनिर्जरा में हेतु " a माना गया है। कहा भी है . जिन कर्मों को नैरयिक करोड़ों वर्षों में (भोग कर) क्षीण करता है, उसे ज्ञानी , त्रिविध गुप्तियों से युक्त होकर एक उच्छ्वास-काल मात्र में ही क्षीण कर देता है। . (शंका-) चलो माना। फिर भी तीन मङ्गलों की कल्पना की कोई सार्थकता नहीं है। (उत्तर-) आपका कहना ठीक नहीं है, क्योंकि आपके प्रश्न का उत्तर दिया जा चुका है , a (पहले तीनों मङ्गलों के पृथक्-पृथक् प्रयोजन बताये जा चुके हैं)। इसलिए अब यह सिद्ध हो गया कि शास्त्र के आदि में, मध्य में तथा अन्त में मङ्गलाचरण करना चाहिए। 15
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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