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________________ -RRRRRRRR 20090099999900 222222223333333322323222222222222333333333333 नियुक्ति-गाथा-78 / (हरिभद्रीय वृत्तिः) तत्र केवलज्ञानोपलब्धार्थाभिधायकः शब्दराशिः प्रोच्यमानस्तस्य भगवतो वाग्योग , & एव भवति, न श्रुतम्, नामकर्मोदयनिबन्धनत्वात्, श्रुतस्य च क्षायोपशमिकत्वात्, स च श्रुतं , & भवति शेषम्, शेषमित्यप्रधानम्। एतदुक्तं भवति- श्रोतृणां श्रुतग्रन्थानुसारिभावश्रुतज्ञाननिबन्धनत्वाच्छेषमप्रधानं & द्रव्यश्रुतमित्यर्थः। अन्ये त्वेवं पठन्ति- 'वयजोगसुयं हवइ तेसिं'। स वाग्योगः श्रुतं भवति / 'तेषां' श्रोतृणाम्, भावश्रुतकारणत्वादित्यभिप्रायः। अथवा 'वाग्योगश्रुतं' द्रव्यश्रुतमेवेति / गाथार्थः // 78 // (वृत्ति-हिन्दी-) 'केवल ज्ञान' से ज्ञेय पदार्थों को व्यक्त करने वाली जो शब्द राशि बोली जाती है, वह भगवान् जिनेन्द्र का वचन-योग ही होता है, श्रुत (भावश्रुत) नहीं होता, . 6 क्योंकि वह (वचन-योग) (तीर्थंकर-) नामकर्म के उदय से निष्पन्न होता है। (भावश्रुत से 1 ca उत्पन्न वह शब्दराशि हो नहीं सकती, और वह शब्दराशि (भाव) श्रुत भी नहीं हो सकती, 7 है क्योंकि वह क्षायोपशमिक हुआ करती है, अतः वह शेष श्रुत (अवशिष्ट, यानी द्रव्यश्रुत) ही है। " . कहने का तात्पर्य यह है- वह शब्द-राशि श्रोताओं में श्रुतग्रन्थानुसारी भावश्रुतज्ञान " ca को उत्पन्न करती है, इसलिए वह शेषश्रुत यानी द्रव्यश्रुत है। अन्य आचार्य गाथा में 7 a ('वयजोगसुयं हवइ सेसं' की जगह) 'वयजोगसुयं हवइ तेसिं' यह पाठ मानते हैं, अर्थात् // वह वचन-योग उन श्रोताओं के लिए भावश्रुत का कारण होने से, 'द्रव्यश्रुत' होता है। अथवा : वचनयोगश्रुत द्रव्यश्रुत ही है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 78 // a विशेषार्थa यहां यह बताया गया है कि तीर्थंकर का उपदेश छद्मस्थ की तरह नहीं होता। छद्मस्थों द्वारा a भावश्रुत के आधार पर द्रव्यश्रुत रूप उपदेश दिया जाना सम्भव है। किन्तु तीर्थंकर मन में सोचकर या चिन्तन करने के बाद नहीं बोलते। उनके तो (भाव) मन ही नहीं होता। वह जो उपदेश देते हैं, वह तो 5 तीर्थंकर-नाम कर्मोदय के कारण होने वाला 'वचन-योग' (वचनात्मक प्रवृत्ति) ही है। आचार्य कुन्दकुन्द 4 उनके द्वारा बिना किसी इच्छा के धर्मोपदेश होना मानते हैं। . नंदी सूत्र के अनुसार जो ज्ञान सर्व द्रव्य, सर्व क्षेत्र, सर्व काल और सर्व भाव को जानतादेखता है, वह केवलज्ञान है। 88888888&&&&&&&&&&&&&&&&& &&&&&&&&&&&& &&& (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)9000@ce@@ 299
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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