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________________ -aaaaaaca श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0000000 18.022222222222222222222 (71) (नियुक्ति-हिन्दी-) केवलज्ञान सभी द्रव्यों, उसकी परिणतियों और भावों के विज्ञान का कारण है, अनन्त है, शाश्वत है, अप्रतिपाती है और एक ही प्रकार का होता है। (हरिभद्रीय दृत्तिः) (व्याख्या-) इह मनःपर्यायज्ञानानन्तरं सूत्रक्रमोद्देशतः शुद्धितो लाभतश्च प्राक् केवलज्ञानमुपन्यस्तम्, अतस्तदर्थो पदर्शनार्थमथशब्द इति। उक्तं च- "अथ प्रक्रियाप्रश्नानन्तर्यमङ्गलोपन्यासप्रतिवचनसमुच्चयेषु"। सर्वाणि च तानि द्रव्याणि च सर्वद्रव्याणि-जीवादिलक्षणानि, तेषां परिणामाः- प्रयोगविससोभयजन्या उत्पादादयः सर्वद्रव्यपरिणामाः, तेषां भावः सत्ता स्वलक्षणमित्यनन्तरम्, तस्य विशेषेण ज्ञपनं विज्ञप्तिः, विज्ञानं वा विज्ञप्तिः-परिच्छित्तिः, तत्र भेदोपचारात्, तस्या विज्ञप्तेः कारणं विज्ञप्तिकारणम्, अत एव सर्वद्रव्यक्षेत्रकालभावविषयं तत्, क्षेत्रादीनामपि द्रव्यत्वात्, तच्च ज्ञेयानन्तत्वादनन्तम्। शश्वद्भवतीति शाश्वतम्, तच्च व्यवहारमयादेशादुपचारतः प्रतिपात्यपि भवति, अत आह६ प्रतिपतनशीलं प्रतिपाति, न प्रतिपाति अप्रतिपाति, सदाऽवस्थितमित्यर्थः। (वृत्ति-हिन्दी-) मनःपर्याय ज्ञान के बाद, सूत्रोक्त क्रम को दृष्टि में रखते हुए, शुद्धि व " + लाभ (सबके बाद, अंत में प्राप्ति) की दृष्टि से (श्रेष्ठ होने से) केवलज्ञान का निर्देश पहले किया a गया है, इसलिए उसका (ही) निदर्शन यहां किया जा रहा है- इसे सूचित करने हेतु ‘अथ' शब्द यहां प्रयुक्त है। कहा भी है- “अथ शब्द का प्रयोग इन अर्थों में किया जाता हैप्रक्रिया, प्रश्न, आनन्तर्य, मङ्गल, उपन्यास, प्रतिवचन और समुच्चय।' (यहां 'अथ' शब्द 'आनन्तर्य' अर्थ में प्रयुक्त है।) सभी जो द्रव्य, अर्थात् जीव आदि लक्षण वाले सभी द्रव्य, उनके जो परिणाम, परिणाम से तात्पर्य है- प्रयोग या स्वभावतः या दोनों से होने वाले a उत्पाद, व्ययरूप परिणाम, उनका भाव / भाव, सत्ता, स्वलक्षण -ये पर्यायवाची हैं। उस भाव (अस्तित्व) की विज्ञप्ति, यानी उसका विशेषतया ज्ञान, विज्ञान, बोध / उस विज्ञप्ति का कारण यह केवलज्ञान होता है। यहां विज्ञप्ति और केवल ज्ञान में भेदोपचार है (अन्यथा केवल ज्ञान, का ही अभिन्न पर्याय विज्ञप्ति है, फिर भी कारण-कार्य व्यवस्था के लिए दोनों में भेद माना, गया है। इसीलिए (सर्वद्रव्य परिणतियों के सद्भाव को जानने में कारण होने से ही) यह सर्व द्रव्य- सर्वक्षेत्र, सर्वकाल, और सर्व भाव को विषय करने वाला है। यहां क्षेत्र (काल, 888888888888888888888888888888888883333333333 222222223 - 296 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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