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________________ पORB0BOROSCRBORORE DHORARROR A आदेश प्राप्त कर आचार्य भद्रबाहु के पास दृष्टिवाद की वाचना ग्रहण करने के लिए पहुंचे। आचार्य / R भद्रबाहु प्रतिदिन उन्हें सात वाचनाएं प्रदान करते थे। एक वाचना भिक्षाचर्या से आते समय, तीन / M वाचनाएं विकाल बेला में और तीन वाचनाएं प्रतिक्रमण के बाद रात्रिकाल में प्रदान करते थे। आर्य स्थूलभद्र का अध्ययन-क्रम चलता रहा। भद्रबाहु की महाप्राण ध्यान की साधना पूर्ण / & होने तक उन्होंने दो वस्तु कम दशपूर्व की वाचना ग्रहण कर ली थी। तित्थोगालिय पइन्ना के अनुसार, M आर्य स्थूलभद्र ने दशपूर्व पूर्ण कर लिए थे। उनके ग्यारहवें पूर्व का अध्ययन चल रहा था। ध्यान से साधना का काल संपन्न होने पर आर्य भद्रबाहु पाटलिपुत्र लौटे। यक्षा आदि साध्वियां आर्य भद्रबाहु के / व वन्दनार्थ आयीं। आर्य स्थूलभद्र उस समय एकांत में ध्यानरत थे। परम वंदनीय महाभाग आचार्य / ca भद्रबाहु के पास अपने ज्येष्ठ भ्राता मुनि आर्य स्थूलभद्र को न देख साध्वियों ने उनसे पूछा- "गुरुदेव! - हमारे ज्येष्ठ भ्राता मुनि आर्य स्थूलभद्र कहां है?" भद्रबाहु ने स्थान-विशेष का निर्देश किया। यक्षा आदि & साध्वियां वहां पहुंचीं। बहनों का आगमन जान आर्य स्थूलभद्र कुतूहलवश अपनी शक्ति का प्रदर्शन M करने के लिए सिंह का रूप बनाकर बैठ गए। साध्वियां शेर को देखकर डर गयीं। वे आचार्य भद्रबाहु / के पास तीव्र गति से चलकर पहुंची और प्रकंपित स्वर में बोली -"गुरुदेव, आपने जिस स्थान का , ल संकेत दिया था, वहां केसरीसिंह बैठा है। लगता है, हमारे भाई का उसने भक्षण कर लिया है।" र भद्रबाहु ने समग्र स्थिति को ज्ञानोपयोग से जाना और कहा- 'वह केसरीसिंह नहीं, तुम्हारा भाई है। पुनः 2 वहीं जाओ। तुम्हें तुम्हारा भाई मिलेगा। उसे वंदन करो।' आर्य स्थूलभद्र वाचना ग्रहण के लिए आचार्य भद्रबाहु के चरणों में उपस्थित हुए। अपने // ल सम्मुख आर्य स्थूलभद्र को देखकर आचार्य भद्रबाहु ने उनसे कहा- "वत्स! ज्ञान का अहं विकास में , में बाधक है। तुमने शक्ति का प्रदर्शन कर अपने को ज्ञान के लिए अपात्र सिद्ध कर दिया है। अग्रिम " वाचना के लिए अब तुम योग्य नहीं रहे हो।" आर्य भद्रबाहु द्वारा आगम वाचना न मिलने पर उन्हें 3 अपनी भूल समझ में आयी। प्रमाद वृत्ति पर गहरा अनुपात हुआ। भद्रबाहु के चरणों में गिरकर उन्होंने / क्षमायाचना की और कहा- "यह मेरी पहली भूल है। इस प्रकार की भूल का पुनरावर्तन नहीं होगा। * आप मेरी भूल को क्षमा कर मुझे वाचना प्रदान करें।" आचार्य भद्रबाहु ने उसकी प्रार्थना स्वीकार नहीं है ल की। किन्तु बाद में आर्य स्थूलभद्र के अत्यन्त आग्रह पर आचार्य भद्रबाहु ने उन्हें चार पूर्वो का ज्ञान 23 अपवाद के साथ प्रदान किया। आर्य स्थूलभद्र को आचार्य भद्रबाहु से दश पूर्वो का ज्ञान अर्थसहित एवं - अवशिष्ट चार पूर्वो का ज्ञान शब्दशः प्राप्त हुआ। 888888888888888888888888888888888888888888888 - I HOROSCRRRRRORSCORRBT -
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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