SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -RRRRRRRoce හ හ හ හ හ හ හ හ හ - 333333333333333333333333333333333333333333333 / नियुक्ति-गाथा-64 (हरिभद्रीय वृत्तिः) प्रतिपादितं प्रतिपातोत्पादद्वारम्।इदानीं यदुक्तं संखेज्ज मणोदव्ये, भागो लोगपलियस्स' >> (42) इत्यादि, तत्र द्रव्यादित्रयस्य परस्परोपनिबन्ध उक्तः / इदानीं द्रव्यपर्याययोः प्रसङ्गत एवोत्पादप्रतिपाताधिकारे प्रतिपादयन्नाह (नियुक्तिः) दवाओ असंखिज्जे, संखेज्जे आवि पज्जवे लहइ। दो पज्जवे दुगुणिए, लहइय एगाउ दव्वाउ // 64 // [संस्कृतच्छायाः-द्रव्याद् असंख्येयान संख्येयान् चापि पर्यवान् लभते।द्वौ पर्यायौ द्विगुणितौ लभते & चैकस्माद् द्रव्यात् // (वृत्ति-हिन्दी-) अब तक प्रतिपात-उत्पाद द्वार का निरूपण हुआ।जो पूर्व में (गाथा44 42 में) कहा था कि 'मनोद्रव्य को देखता हुआ अवधिज्ञानी लोक का तथा पल्योपम काल का ce संख्यात भाग जानता है' इत्यादि, वहां द्रव्य, क्षेत्र व काल -इन तीनों का परस्पर-सम्बन्ध & बताया था। अब प्रासंगिक रूप से द्रव्य व पर्याय के ही उत्पाद व प्रतिपात -इन दो अधिकारों a (विषयों) को आगे प्रतिपादित करने जा रहे हैं (64) - (नियुक्ति-हिन्दी-) (अवधिधारी) एक द्रव्य की (उत्कृष्टतया) असंख्यात, या संख्यात, भी पर्यायों को देख सकता है, और (जघन्यतः) किसी एक द्रव्य के द्विगुणित दो (यानी चार) , पर्यायों को (ही) देख सकता है। R (हरिभद्रीय वृत्तिः) (व्याख्या-) परमाण्वादिद्रव्यमेकं पश्यन् द्रव्यात्सकाशात् तत्पर्यायान् . उत्कृष्टतोऽसंख्येयान् संख्येयांश्चापि मध्यमतो लभते प्राप्नोति पश्यतीत्यनर्थान्तरम्, तथा : जघन्यतस्तु द्वौ पर्यायौ द्विगुणितो 'लभते च पश्यति च एकस्माद् द्रव्यात्। एतदुक्तं भवतिवर्णगन्धरसस्पर्शानेव प्रतिद्रव्यं पश्यति, न त्वनन्तान्।सामान्यतस्तु द्रव्यानन्तत्वादेव अनन्तान् ? पश्यतीति गाथार्थः॥६४॥ (वृत्ति-हिन्दी-) परमाणु आदि एक द्रव्य को अवधिज्ञानी देखे तो, उस द्रव्य के * पर्यायों में उत्कृष्टतः (अधिक से अधिक) असंख्येय, और मध्यम यानी औसत रूप से 828ca@@ce@2882802008c000 261
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy