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________________ 3333333333333333333 - 33333333333333333333333333 -acecacacacace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 200000 विशेषार्थ आगमों में वृद्धि-हानि को छः प्रकार से सम्भावित बताया गया है। छः प्रकार की वृद्धियां , हैं- (1) अनन्त भागवृद्धि, (2) असंख्यात भागवृद्धि, (3) संख्यातभाग वृद्धि, (4) संख्यात गुणवृद्धि, ce (5) असंख्यात गुणवृद्धि, और (6) अनन्त गुणवृद्धि / इसी प्रकार छः प्रकार की हानियां हैं (1) अनन्त , & भाग हानि, (2) असंख्यातभाग हानि, (3) संख्यात भाग हानि, (4) संख्यात गुणहानि, (5) असंख्यात , गुण हानि, और (6) अनन्त गुण हानि। इनमें, अवधिज्ञान के विषयभूत होने वाले क्षेत्र व काल के , 8 आदि व अन्त ये दो भाग नहीं होते, क्योंकि अनन्त भागवृद्धि व अनन्त गुण वृद्धि, और अनन्तभागहानि ? & व अनन्त गुणहानि -ये क्षेत्र व काल की नहीं होतीं। इसका कारण यह है कि अवधि का विषय भूत , क्षेत्र अनन्त नहीं होता (केवल ज्ञान के सिवा अनन्त क्षेत्र का ज्ञाता कोई ज्ञान नहीं होता) और काल: भी अनन्त नहीं होता (क्योंकि सीमित काल का ही वह ज्ञान होता है।) अब जितने क्षेत्र को प्रथमतः किसी अवधिज्ञानी ने देखा, दूसरा अवधिज्ञानी उसे प्रतिसमय, ch असंख्यात भागवृद्धि से युक्त देखता है, तीसरा संख्यात भाग वृद्धि से युक्त देखता है, चौथा संख्यात . गुणवृद्धि से युक्त देखता है, पांचवां असंख्यात गुण-वृद्धि से युक्त देखता है। इसी प्रकार हानि की दृष्टि , से कथन किया जा सकता है। इस प्रकार, क्षेत्रगत व कालगत वृद्धि की हानि चार-चार प्रकार की : & घटित होती हैं। इसी प्रकार द्रव्यगत अवधिज्ञान की भी हानिवृद्धि होती है।जैसे, किसी अवधिज्ञानी ने प्रथम . & जितने द्रव्यों को देखा, कोई दूसरा अवधिज्ञानी उससे अनन्त भाग अधिक द्रव्यों को देखता है, तीसरा , अवधिज्ञानी उन्हीं को अनन्त गुण-वृद्धियुक्त देखता है, चौथा उससे अनन्तगुणहीन इत्यादि क्रम से , 4 उक्त हानि-वृद्धि की आयोजना कर लेनी चाहिए। इसी प्रकार, पर्यायों में छः छः प्रकार की हानि-वृद्धि . सम्भावित हैं। षड्विध गुणहानि-वृद्धि पर शंका उठाई गई है कि क्षेत्र की वृद्धि या हानि के साथ ही द्रव्य , की वृद्धि, या हानि और द्रव्य-वृद्धि या हानि के साथ पर्यायों में भी वृद्धि या हानि निश्चित है, तब क्षेत्र, & से पृथक्, द्रव्यगत व पर्याय गत वृद्धि या हानि का व्यवस्थापन क्यों किया जाता है? दूसरी बात, " a आधार की वृद्धि या हानि होने पर, आधेय में वृद्धि या हानि निश्चित है तो फिर क्षेत्र की चतुर्विधर वृद्धि-हानि, द्रव्य की द्विविध और पर्याय की षड्विध वृद्धि-हानि -यह विचित्रता कैसे? ऐसा कैसे होता। & है कि क्षेत्र के असंख्येय भाग की वृद्धि हो तो उसके आधेय द्रव्यों की भी असंख्येय भाग आदि की " & वृद्धि नहीं होती? और चूंकि उसके आधेय द्रव्यों की अनन्तता है, इसलिए द्रव्य में अनन्त भागवृद्धि र * होने पर कैसे पर्यायों में असंख्येय भाग आदि वृद्धि ही होती है और द्रव्य की अनन्तगुण वृद्धि होने पर पर्यायों में असंख्यात गुण आदि की ही वृद्धि हो -ऐसा कैसे होता है? उत्तर में कहा गया है कि यह ___252 (r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)(r)n&
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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