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________________ 333333333333333333333333333333333333333333333 - RECR caca cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 9090099 90 900 3. दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा-संज्ञी और असंज्ञी का तीसरा वर्गीकरण दृष्टि अथवा दर्शन के * आधार पर किया गया है। इसके अनुसार सम्यक्दृष्टि जीव संज्ञी और मिथ्यादृष्टि जीव असंज्ञी होते ल हैं। मिथ्यात्व मोहनीय और श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम से संज्ञीश्रुत की प्राप्ति होती है। मिथ्यात्व मोहनीय के उदय और श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम से असंज्ञीश्रुत की प्राप्ति होती है व है। संज्ञी का श्रुत संज्ञीश्रुत, और असंज्ञी का श्रुत असंज्ञीश्रुत कहलाता है। जैसे कुत्सित शील को अशील कहा जाता है वैसे ही मिथ्यात्व से कुत्सित होने के कारण संज्ञी को असंज्ञी कहा गया है। मिथ्यात्व के कारण उसका ज्ञान भी अज्ञान कहलाता है। उक्त तीनों संज्ञाओं के आधार पर संज्ञी-असंज्ञी का विभाग इस प्रकार होता हैसंज्ञा संज्ञी असंज्ञी कालिक्युपदेशिकी समनस्क पंचेन्द्रिय सम्मूर्छिम प्राणी हेतुवादोपदेशिकी द्वीन्द्रिय से सम्मूर्छिम पञ्चेन्द्रिय . एकेन्द्रिय द्रष्टिवादोपदेशिकी सम्यकदृष्टि मिथ्यादृष्टि सम्यक्श्रुत और मिथ्याश्रुत के विभाग के दो आधार हैं- 1. ग्रंथकार, 2. स्वामित्व। केवली द्वारा प्रणीत श्रुत सम्यक्श्रुत है। मिथ्यादृष्टि द्वारा रचित श्रुत मिथ्याश्रुत है। स्वामित्व की अपेक्षा द्वादशांग श्रुत चतुर्दशपूर्वी के लिए सम्यक्श्रुत है। नन्दी चूर्णिकार और . & टीकाकार मलयगिरि ने त्रयोदशपूर्वी, द्वादशपूर्वी, एकादशपूर्वी -इन अन्तरालवर्ती पूर्वधरों का भी , उल्लेख किया है। जिनभद्रगणि ने विशेषावश्यक भाष्य में अङ्गबाह्य श्रुत को भी सम्यक्श्रुत बतलाया & है।नब्दीचूर्णिकार के मत में अभिन्न दशपूर्वधर से नीचे आचारांग तक के सभी श्रुतस्थान सम्यक्दृष्टि स्वामी के लिए सम्यक्श्रुत हैं, मिथ्यादृष्टि स्वामी के लिए मिथ्याश्रुत हैं। श्रुत सम्यक् है, उसका अध्येता सम्यकदृष्टि है। वह अपने सम्यक्त्व गुण के कारण सम्यक्श्रुत को सम्यक् रूप में ग्रहण करता है। शर्करा युक्त दूध पित्त ज्वर वाले व्यक्ति के लिए अनुकूल नहीं होता, है वैसे ही मिथ्यादृष्टि सम्यक्श्रुत को मिथ्यात्व के कारण मिथ्या रूप में परिणत कर लेता है। इसलिए . सम्यक्श्रुत उसके लिए मिथ्या हो जाता है। सम्यक्दृष्टि मनुष्य मिथ्याश्रुत का सम्यक् रूप में ग्रहण ca करता है, अतः उसके लिए मिथ्याश्रुत सम्यक्श्रुत बन जाता है। मिथ्या अभिनिवेश के कारण, ce मिथ्याश्रुत मिथ्यादृष्टि के लिए मिथ्या ही रहता है। श्रुत की सादिता-अनादिता- टीकाकार ने द्रव्यचतुष्टय से श्रुत की सादिता-अनादिता का 2 विवेचन किया है। उसका सार इस प्रकार है - 158 @ @ @ @ @Rece@ @cR@ @ @ @ @
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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