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________________ -Raacaacace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 0900909009 333333332222222222222222222222222222222333322 गति (अर्थात् लोक के अगल-बगल के अन्तःप्रदेशों को न छूते हुए, सीधे दण्ड की जैसी गति) ca से अनुत्तर वैमानिक देवों में जाए या वहां से लौटे तो वह लोक के 14 भागों में से सात भागों , a में रहता है (अर्थात् 14 राजू प्रमाण लोक के सात राजू प्रमाण क्षेत्र उस जीव का रहता है)। नीचे छठी पृथ्वी (छठे नरक) तक जाए या वहां से लौटे तो उसका क्षेत्र (अधो लोक के) सात भागों में से पांच भाग तक रहता है, इससे (छठी पृथ्वी से) नीचे उसका क्षेत्र नहीं होता है a क्योंकि सम्यग्दृष्टि का नीचे सातवें नरक में जाने का निषेध है। विशेषार्थ पल्योपम शब्द एक विशेष, अति दीर्घ काल का सूचक है।जैन वाङ्मय में इसका बहुलता से प्रयोग हुआ है। पल्य या पल्ल का अर्थ कुंआ या अनाज का बहुत बड़ा कोठा होता है। उसके आधार , cm पर या उसकी उपमा से काल-गणना की जाने के कारण यह कालावधि ‘पल्योपम' कही जाती है। पल्योपम के तीन भेद हैं- 1. उद्धार-पल्योपम, 2. अद्धा-पल्योपम, 3. क्षेत्र-पल्योपम। उद्धार-पल्योपम- कल्पना करें, एक ऐसा अनाज का कोठा या कुंआ हो, जो एक योजन , ca (चार कोस) लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा हो / एक दिन से सात दिन की आयु वाले " 4 नवजात यौगलिक शिशु के बालों के अत्यन्त छोटे टुकड़े किए जाएं, उनसे ढूंस-टूंस कर उस कोठे या , कुंए को अच्छी तरह दबा-दबा कर भरा जाय / भराव इतना सघन हो कि अग्नि उन्हें जला न सके, चक्रवर्ती की सेना उन पर से निकल जाय तो एक भी कण इधर उधर न हो सके, गंगा का प्रवाह बह " ca जाय तो उन पर कुछ असर न हो सके।यों भरे हुए कुंए में से एक-एक समय में एक-एक बाल-खंड . निकाला जाय / यों निकालते-निकालते जितने काल में वह कुंआ खाली हो, उस काल-परिमाण को , उद्धार पल्योपम कहा जाता है। उद्धार का अर्थ निकालना है। बालों के उद्धार ना निकाले जाने के आधार पर इसकी संज्ञा उद्धार-पल्योलम है। यह संख्यात समय-प्रमाण माना जाता है। उद्धार-पल्योपम के दो भेद हैं- सूक्ष्म एवं व्यावहारिक / उपर्युक्त वर्णन व्यावहारिक उद्धारca पल्योलम का है। सूक्ष्म उद्धार-पल्योलम इस प्रकार है व्यावहारिक उद्धार पल्योलम में कुंए को भरने में यौगलिक शिशु के बालों के टुकड़ों की जो , & चर्चा आई है, उनमें से प्रत्येक टुकड़े के असंख्यात अदृश्य खंड किए जाएं। उन सूक्ष्म खंडों से " पूर्ववर्णित कुंआ ढूंस-ढूंस कर भरा जाय। वैसा कर लिए जाने पर प्रतिसमय एक-एक खंड कुंए में से / * निकाला जाय।यों करते-करते जितने काल में वह कुंआ, बिल्कुल खाली हो जाय, उस काल-अवधि को सूक्ष्म उद्धार-पल्योपम कहा जाता है। इसमें संख्यात वर्ष-कोटि परिमाण-काल माना जाता है। - 130 82@ce@ @@@@@@90898808
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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