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________________ ce CE CR CR CR cace श्रीआवश्यक नियुक्ति (व्याख्या-अनुवाद सहित) 2020009| को देखकर कहना कि 'कितनी बड़ी मृतकों की राशि है', इस प्रकार की भाषा अजीवमिश्रिता a सत्यामृषा भाषा कहलाती है, क्योंकि यह भाषा भी मृतकों की अपेक्षा से सत्य और जीवितों की 4 अपेक्षा मृषा है। (6) जीवा-जीवमिश्रिता-उसी पूर्वोक्त राशि को देखकर, संख्या में विसंवाद होने पर : ce भी नियतरूप से निश्चित कह देना कि इसमें इतने मृतक हैं, इतने जीवित हैं। यहां जीवों और अजीवों , की विद्यमानता सत्य है, किन्तु उनकी संख्या निश्चित कहना मृषा है। अतएव यह जीवाजीवमिश्रिता , सत्यामृषा भाषा है। (7) अनन्तमिश्रिता-मूली, गाजर आदि अनन्तकाय कहलाते हैं, उनके साथ कुछ c. प्रत्येक वनस्पतिकायिक भी मिले हुए हैं, इन्हें देखकर कहना किये सब अनन्तकायिक हैं- यह भाषा & अनन्तमिश्रिता सत्यामृषा है। (8) प्रत्येकमिश्रिता- प्रत्येक वनस्पतिकाय का संघात अनन्तकायिक के & साथ ढेर करके रखा हो, उसे देखकर कहना कि 'यह सब प्रत्येकवनस्पतिकायिक है'; इस प्रकार की र भाषा प्रत्येकमिश्रिता सत्यामृषा है। (9) अद्धामिश्रिता- अद्धा कहते हैं- काल को। यहां प्रसङ्गवश . c& अद्धा से दिन या रात्रि अर्थ ग्रहण करना चाहिए, जिसमें दोनों का मिश्रण करके कहा जाए। जैसे अभी दिन विद्यमान है, फिर भी किसी से कहा- उठ, रात पड़ गई। अथवा अभी रात्रि शेष है, फिर भी कहना कि उठ, सूर्योदय हो गया। (10) अद्धाद्धामिश्रिता- अद्धाद्धा कहते हैं- दिन या रात्रि काल cm के एक देश (अंश) को। जिस भाषा के द्वारा उन कालांशों का मिश्रण करके बोला जाए। जैसे- अभी " ca पहला पहर चल रहा है, फिर भी कोई व्यक्ति किसी को जल्दी करने की दृष्टि से कहे कि 'चल' मध्याह्न CM हो गया है', ऐसी भाषा अद्धाद्धामिश्रिता होगी है। असत्यामृषा के 12 भेद इस प्रकार हैं- (1) आमंत्रणी, (2) आज्ञापनी (3) याचनी (4) पृच्छनी (5) प्रज्ञापनी (6) प्रत्याख्यानी (7) इच्छानुलोमा (8) अनभिगृहीता (9) अभिगृहीता, (10) ca संशयकरणी, (11) व्याकृता (12) अव्याकृता। R (1) आमंत्रणी-सम्बोधनसूचक भाषा।जैसे- हे देवदत्त! (2) आज्ञापनी-जिसके द्वारा दूसरे & को किसी प्रकार की आज्ञा दी जाए। जैसे- 'तुम यह कार्य करो। आज्ञापनी भाषा दूसरे को कार्य में , प्रवृत्त करने वाली होती है। (3) याचनी-किसी वस्तु की याचना करने (मांगने) के लिए प्रयुक्त की। जाने वाली भाषा / जैसे- मुझे दीजिए। (4) पृच्छनी-किसी संदिग्ध या अनिश्चित वस्तु के विषय में ce किसी विशिष्ट ज्ञाता से जिज्ञासावश पूछना कि 'इस शब्द का अर्थ क्या है?' (5) प्रज्ञापनी-विनीत शिष्यादि जनों के लिए उपदेशरूप भाषा। जैसे- जो प्राणिहिंसा से निवृत्त होते हैं, वे दूसरे जन्म में दीर्घायु होते हैं। (6) प्रत्याख्यानी-जिस भाषा के द्वारा अमुक वस्तु का प्रत्याख्यान कराया जाए या & प्रकट किया जाए। जैसे- आज तुम्हारे एक प्रहर तक आहार करने का प्रत्याख्यान है। अथवा किसी के द्वारा याचना करने पर कहना कि 'मैं यह वस्तु तुम्हें नहीं दे सकता। (7) इच्छानुलोमा-जो भाषा | इच्छा के अनुकूल हो, अर्थात्- वक्ता के इष्ट अर्थ का समर्थन करने वाली हो। इसके अनेक प्रकार हो - 90 (r)(r)(r)(r)ce@@ce@@cr80@@ce(r)(r) 333333333333333333388888888888
SR No.004277
Book TitleAvashyak Niryukti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumanmuni, Damodar Shastri
PublisherSohanlal Acharya Jain Granth Prakashan
Publication Year2010
Total Pages350
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size10 MB
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