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________________ (62) वैद्यवल्लभ / प्रातः सदा पिबति योनुपयोथ रात्रौ // दप विमर्दयति नैकविलासिनीनां सर्वांगरोगहरणेषु विशेष एषः // 17 // भाषाटीका // कोंचके बीज मूशली असगंध गोखरू इनको समान भागलै और पांच पल पीपलको 32 सेर दूधर्म पचावे // 15 // दालचीनी बडी इलायची वेजपाव नागकेशर तथा लोहभस्म नेत्रवालौ वंशलोचन चंदन केशर सोंठ,मिर्च पीपल अधिक वामेश्वर हरड़ बहेडे आवरे // 16 // ये सब समान भागलै सेर खांड गेर कल्क को फिसाको प्रातसमें खाय सदा दूध सो तथा रावमें दौ स्त्रीनके मदको हरे सबरे रोग मिटै विशेष करके // 17 // अथ लस्सनपाकः॥ रसोनकं प्रस्थमितं विमर्च दुग्धे घटेनापि विपाच्य वह्नौ। शुल्बाभ्रकं लोहरसंलवंगं कर्पूरमाकल्लकमश्वगन्धा // 18 // द्विनिशा नागरं नागकेशरं त्रिफलासमैः॥ जातिपत्री फलं जाती मागधी मरिचं तथा // 19 // प्रस्थैकखण्डसहितेनहरेत्समीरं गुल्मव्यथां विषमसर्वसमीरणार्तिम् // मन्दानिशुलकफरोगविनाशकारी पाकः स्मृतः सुकविना हि रसोनकाख्यः॥२०॥
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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