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________________ (36) वैद्यवल्लभ। . पत्ताके रसमें तीनदिन मर्दन कर ताकौं मिश्रीके संग खाय // 1 // तौ पिचसो भई संग्रहणी दुःखक देवेवारीको हरे और ज्वर अतीसार वीवरक्तके गिरवेको दर्दको दूरकरे॥२ अथ अतीसारेगुटिका॥ मरिचंखपरंनागफेनतन्दुलकैर्जलैः // मर्यतंदुलतोयेनगुटीसर्वातिसारजित // 3 // भाषाटीका // कालीमिर्च खपरिया शुद्धअफीम इनको समान भागलै सांठीचागल के धोइबे के पानीसों घोट गोलीकर चावलके धोवनसो देनी वौ सवरी भांतिके दस्तके विकार को मेंटै // 3 // पुनः॥ जीरकविजयाबिल्वनागफेनसमांशकः // दधिनीरेणसाकार्यागुटीसर्वातिसारजित् // 4 // भाषाटीका // जीरौ भांग वेलगिरी अफीम ये समान भागले दही के जलसे गोली कर देवे सों सवरे दस्वविकार को दूर करै॥ 4 // अथ अतीसारें चूर्णम् // कपित्थवटेशृंगंचशूठीजीरकशर्करा // समभागैःकृतंचूर्णमतीसारहरंपरम् // 5 // भाषाटीका ॥केत बडके कोमलपत्ता सोठ जीरौ मिश्री ये समान भाग लै चूर्ण कर देय वौ महातिसारको हरे।।५॥
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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