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________________ (32) वैद्यवल्लभ। न्धो नौन ये बराबर भाग लै वाको चूर्ण कर गरम जलके संग फाँकवेसों मूत्ररोधको निवारण करै // 17 // अथाश्मरीरोगे उपचारः॥ शर्करांच यवक्षारं गवां तक्रेण यः पिबेत् // उष्णवातस्तथाश्मयाः पीडागच्छति सत्वरम् 18 // भाषाटीका // मिश्री यवक्षार गायके मठासों याको पीवे वो गरम वाय तथा पथरीके दर्दको जल्दी दूरकरै // 18 // अथ लिङ्गलेपः॥ नागफेनो विषं स्वर्णबीज जातीफलं समम् // गोघृतेनच समर्थ लिङ्गलेपो विधीयते // 19 // तस्माद्भवति मानां मृतकन्दर्पवृद्धिकृत् // प्रयोगो हस्तिना सघश्चमत्कारकरः परम्॥ 20 // भाषाटीका // अफीम, वत्सनाभ, धतूरके बीज,जायफल, इनको समान भाग ले चूर्णकर गायके धीमें याको मर्दनकर लिङ्गपर लेप करनों // 19 // वा मनुष्यको मन्यो भी काम बढे करे ये योग इस्तिकविको जल्दी चमत्कार करे बहुत / / 20 // वचाश्वगन्धागजपिप्पलीनां चूर्ण महिष्या नवनीतमेभिः // विलेपितंसत्पुरुषस्यलिंगं लंबं भवेद्धस्तिमतं च सम्यक् // 21 //
SR No.004276
Book TitleVaidyavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastikruchi Kavi
PublisherHastikruchi Kavi
Publication Year1843
Total Pages78
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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