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________________ आज्ञा हो तुम्हारी। कोशा बोली-'आज्ञा लेते हैं आप! आप ही की चित्रशाला है। कौन होती हूं मैं आज्ञा देने वाली? आप चातुर्मास करें।' . स्थूलभद्र वहां रह गए। सुपरिचित वेश्या कोशा, जिसके साथ बारह वर्ष बिताए थे। वही चित्रशाला, जो प्रत्येक के मन में कामवासना जगाने में समर्थ थी। पूरा वातावरण कामुकता को बढ़ाने वाला था। स्थूलभद्र वहां रहे। तपस्या नहीं की। षड्रस भोजन करते रहे। कोशा ने कहा-कहां फंस गए आप! संन्यास क्यों ले लिया? छोड़ दें इसे! मेरे घर पर जीवन भर रहें। मैं आपकी हं।' इतना सब-कछ होने पर भी स्थलभद्र निर्लिप्त हे। चार मास पूरे हुए। काजल की कोठरी में रहे। पर काजल की एक रेखा भी नहीं लगी। सूरज बादल की ओट में छिपा था। बादल फटे और सूरज प्रकट हो गया। . स्थूलभद्र का यह उदाहरण सर्वसामान्य नहीं है, अतिरिक्त है। पर आदमी ऐसा कर सकता है। उन्होंने प्रतिक्रमण के माध्यम से ऐसा किया। प्रतिक्रमण की चेतना जागने पर सब विकार समाप्त हो जाते हैं। दो बड़े सूत्र हैं। एक है अतिक्रमण को बदलने के लिए प्रतिक्रमण की चेतना का जागरण और दूसरा है अतीत की ग्रंथियों को खोलने के लिए प्रायश्चित। विज्ञान के क्षेत्र में सोचा जा रहा है कि 'जीन' को बदलने का सूत्र हस्तगत हो जाए तो पूरे व्यक्तित्व को बदला जा सकता है। अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत पहले सोचा गया था कि कर्म को बदलने का सूत्र हाथ लग जाए तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। मैं समझता हूं, भाव इतनी शक्तिशाली साधना है कि उससे कर्म को बदला जा सकता है। 'जीन' को बदला जा सकता है। जो व्यक्ति अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना जानता है, जिसने भाव-परिवर्तन का प्रयोग किया है, वह अपने 'जीन्स' को भी बदल सकता है और कर्म को भी बदल सकता है। यह बदलने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के माध्यम से समूची चेतना का रूपान्तरण किया जा सकता है और चेतना को नये रूप में प्रस्थापित किया जा सकता है। 180 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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