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________________ लाया जा सकता। आयुष्य का जितना कालमान होता है, उसके पूरे होने पर ही प्राणी की मृत्यु होती है, पहले-पीछे नहीं। इसमें किसी भी निमित्त से उस प्राणी की मृत्यु संभव नहीं होती। ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, ऐसे निमित्त मिलते हैं कि एक साथ हजारों मनुष्य मर जाते हैं। यह सब सोपक्रम आयुष्य का खेल है। निमित्त से कर्म विपाक में आ जाता है। . . असातवेदनीय कर्म का बंध हुआ। उसका परिणाम यह है कि वह व्यक्ति को प्रतिकूल संवेदन करायेगा। उसके विपाक से प्रतिकूल संवेदन होगा। प्रतिकूल संवेदन किस रूप में होगा-यह सब निमित्तों पर आधारित है। किस काल, देश, क्षेत्र में होगा, यह अनेक बातों पर आधारित है। ___दो आदमी हैं। एक मद्रास का है और दूसरा राजस्थान का। मद्रास के आस-पास रहने वाले व्यक्तियों में एक बीमारी पायी जाती है। अनेक व्यक्तियों के पैरों में सोथ आ जाती है। वे हाथी के पैर जैसे हो जाते हैं। राजस्थान में ऐसा नहीं है। राजस्थान में लू चलती है। यहां के लोगों, के घुटनों में दर्द रहता है। शीतप्रधान देश में शीत-जन्य बीमारियां अधिक होती हैं और उष्ण-प्रधान देश में उष्णता-जन्य बीमारियां अधिक होती हैं। सारी घटनाओं में द्रव्य, क्षेत्र और काल का प्रभाव रहता है। सभी प्रदेशों के आदमियों को असातवेदनीय कर्म को भुगतना पड़ता है। प्रत्येक मनुष्य का भौगोलिक और द्रव्यगत कारण भिन्न-भिन्न होता है। उसी के अनुसार कर्मों का विपाक भुगतना होता है। जहां भौगोलिक भिन्नता और द्रव्यगत भिन्नता आती है वहां असातवेदनीय कर्म के भोगने में भी भिन्नता आ जाती है। लू लगने की बीमारी यदि असातवेदनीय कर्म के कारण ही हो तो यह क्यों होता है कि राजस्थान के आदमी को ही ल लगे और मद्रास वाले को न लगे। कर्म के क्षेत्र में यह पक्षपात नहीं होना चाहिए। फिर जैसे कुछ लोग ईश्वर पर पक्षपात का आरोप लगाते हैं कि ईश्वर ने एक को ऐसा बना दिया और एक को वैसा, वही पक्षपात का आरोप कर्म पर लगाया जायेगा। किन्तु यह पक्षपात नहीं है। यह अन्तर आता है भौगोलिकता के कारण। जहां गर्मी का प्रकोप होता है तथा अन्यान्य कुछ कारण और मिलते हैं, वहां लू लगती है। जहां गर्मी नहीं है, अन्यान्य 116 कर्मवाद
SR No.004275
Book TitleKarmwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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